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३९ ] इत्यादि गाथा लिखके उत्सूत्र भाषणसे मिथ्यात्वका कारण कियाहै जिस का निर्णयता चौथे और सातवें महाराजजी के लेखकी समीक्षामें इसही ग्रन्यके पृष्ठ २०५ से २१० तक और ३८५ से ३९५ तक सविस्तार छपगयाहै सो पढ़नेसे हर्षभूषणजी की शास्त्रार्थ शन्य विद्वत्ताका दर्शन अच्छीतरहसे होजावेगा।
और श्रीनिशीथ तथा श्रीदशवैकालिकत्तिके नामसे चलासंबंधीकल्पित अधरा पाठ लिखके उसीपर अपनी मतिसे कुविकल्प उठाकर कालचलाके बहाने अधिक मासकी गिनती उत्सत्र भाषणरूप निषेध करके बाल जीवोंके आगे धर्म ठगाई फैलाईहै जिसका निर्णयतो 'जैन सिद्धांत समाचारी'के लेखकी समीक्षामें इसही ग्रन्थ के पृष्ठ ५८ से ६५ तक और पांचवें महाशयजी के लेखकी समीक्षामें पृष्ठ २० से २२३ तक अपगयाहै सो पढनेसे मालम होजावेगा। और रत्नकोष ज्योतिष ग्रन्थका १ श्लोक लिखके अधिक मासमें मुहर्त नैमित्तिक विवाहादि संसारिक कार्य नहीं होनेका दिखाकर विनामुहर्तका पर्युषणादि धर्म कायमी अधिकमासमें महाने का दिखाया सौमी उत्सूत्र भाषणहै इस बातका निर्णय चौथे महाशयके लेखको समीक्षा, पृष्ठ १४ से २०४ तक छप गया। ____ और भी इसीही तरहसे अधिक मासके ३० दिनों को गिनतीम निषेध करके ८० दिनके ५० दिन बालजीवोंके आगे सिद्ध करने के लिये कुयक्तियोंके विकल्पोका और उत्सत्र भाषाका संग्रह करके भी फिर जोजो मामवद्धिके अनाव सम्बन्धीत्रीपर्युषणा कल्पचर्णि, निशीपचर्णि,पर्युषणा कल्पटिप्पण और संदेहविषौषधियति सविस्तार वाले सब पाठों को छोड़करके उसीके पूर्वापरका संबंध विनाके और
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