Book Title: Bruhat Paryushana Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Jain Sangh

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Page 544
________________ [ ४४० ] थाकार महाराज के अभिप्राय विरुद्ध अघरे अधरे पार्टीको लिखके दृष्टिरागी गच्छकदाग्रही बिवेकशून्य मुग्ध जीव के आगे मास वृद्धि दो श्रावण होतेभी भाद्रपद में पर्युषणा ठहराकर दिखानेका प्रयास किया जिसका निर्णय तो इस ग्रन्थमें अच्छी तरह से सविस्तार शास्त्रकार महाराज के अभिप्राय सहित शाओं के संपूर्ण पाठार्थों पूर्वक लिखने में आया है से पढने से निष्पक्षपाती सज्जन स्वयं विचार करलेवेंगे । औरमी सुप्रसिद्ध श्रीकुलमंडनसूरिजीने विचारामृत संग्रह नाना प्रकरण में पर्युषणाधिकारे पृष्ठ १३ में अधिक मासको गिनती निषेध करनेके लिये जो लेख लिखा है उसीका भी नमूना यहाँ दिखाता हूं। यथा युगतृतीय पंचम वर्ष संभावीयेोऽधिकमासः स्यात् मासोलाके लोकोत्तरेच चतुर्मास सांवत्सरिकादि प्रमाण चिंतायां क्वाप्युपयुज्यते, डोके दीपोत्सवाक्षयतृतीया भूमिदेोहादिषु शुद्ध द्वादश मासांतर्भाविष डोकोत्तरेचचतुर्मासिकेषु 'आसाढमासे दुप्पया' इत्यादि पौरुषी प्रमाण चिंतायां षण्यासायण प्रमाश्यां वर्षतिर्भावि जिनजन्मादि कल्याणकेषु वृद्वावासस्थित स्यविर नवविभागक्षेत्र कल्पमायांच नायंगण्यते कालचूलत्वादस्य । तथाहि । निशीथे दशवेकालिक तौच, चूला चातुर्विध्यं द्रव्यादिभेदात् तत्र द्रव्य धूला ताम्रचूलादि क्षेत्रचूला मेरोचत्वारिंशद्योजन प्रमाण चूलिका कालचूला युगेतृतीय पंचनवर्ष येोरधिक मासकः भावचूलातु दशवैकालिकस्य चूलिकाद्वयं । नच चूलाचूलावतः प्रमाण चिंतायां पृथक् व्यात्रियते I यथा । लक्षयोजन प्रमाणस्य मेरीः प्रमाणचिंतायां चूलिका प्रमाणमिति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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