Book Title: Bruhat Paryushana Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Jain Sangh

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Page 540
________________ [३६] सम्बन्धी पूर्वापरविरोधि (विषमवादी) तथा उत्सूत्र भाषणोंकी कुयुक्तियांवाले और सम्यकत्व से भ्रष्ट करके मिथ्यात्वमें गेरनेवाले लेखोंको दीर्थ संसारीके सिवाय और कौन मान्य करके श्रीतीर्थंकर गणधरादि महाराजांकी आशातनाकारक सउटा बर्ताव करेगा सो भी तत्व पुरुष न्याय दृष्टि वाले सज्जन स्वयं विचार लेखेंगे___और अधिक मासके निषेधक श्रीधर्मसागरजी श्रीजय विजयजी श्रीविनयविजयजी और पं० श्रीहर्षभूषणणी वगैरहोंने जो जो गच्छकदाग्रही दृष्टिरागी मुग्ध जीवोंको मिथ्यात्वके धममें गेरनेके लिये उत्सूत्र भाषणोंका और कुयुक्तियोंका संग्रह करके अपना संसार छद्धिका कारण करते हुए अपने ऐसे कल्पित डेखेको सत्य माननेवाले अपने पक्षग्राहियोंका भी संसार वृद्धिका कारण कर गये हैं सो इन सब सत्सूत्र भाषणरूप कल्पित कुयुक्तियोंके लेखांका निर्णय तो इस ग्रन्थ में अनुक्रमसे सातों महाशयोंके लेखांकी समीजामें होगया है सो इस ग्रत्यको आदिसे अन्त तक पक्षपात रहित होकर न्याय दृष्टिसे पढ़नेसे सब बातोंका अच्छी तरहसे निर्णय मालम होजावेगा । तथापि जो पं० श्रीहर्षभूषणजीने पर्युषणस्थिति नामक लेख में जो जो उत्सूत्र भाषणांका और कुयुक्तियोंका संग्रह करके मिथ्य त्वका कारण किया है उसीका दिग्दर्शनमात्र थोड़ासा नमूना इस जगह पाठकगणको दिखाता हूं यथा श्रीसोमंधरमरहतं नवापर्युषणास्थितिं ब्रुवेर्तितमाद्रस्य ध्यतं युक्त्यागमः ॥ नन्वशीत्यादिनः पर्युषणापर्वसिद्धान्ते क प्रोतमस्तीत्येबंचे तर्हि पंच मासात्मकं वर्षा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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