Book Title: Bruhat Paryushana Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Jain Sangh

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Page 528
________________ [ ४२४ ] कदाबहकी कल्पनाको स्थापन करनेके लियेऔर सत्यबातों का निषेध करने के लिये पर्युषणा विचारके लेख में उत्सूत्र भाषगोंको और कुयुक्तियोंके विकल्पोंके प्रत्यक्ष मिथ्या गप्योंको जिसके भी शास्त्रानुसार युक्ति पूर्वक लिखनेवालेको शाख मार्गसे विपरीत न चलने के लिये सावधानी दिखाते हैं सो तो प्रत्यक्ष धूर्ताचारोका लक्षण है इमको पाठक वर्ग स्वयं विचार लेवेगे; और (समालोचनाकी समालोचना शास्त्र मर्यादा पूर्वक करनेको लेखक तैयार है ) सातवें महाश यजो के इस लेख पर भी मेरेको इतनाहीं कहना है कि-पञ्चांगीकी श्रद्धा रहित कदाग्रहमें आगेवान, अनिनिवेशिक मिथ्यात्वको सेवन करने वाले तथा अन्यायमें प्रवर्तने वाले होकरकेभी शास्त्रा. नुसार युक्ति पूर्वक मेरे सत्य लेखों की समालोचना आप कैसे कर सकोगे क्योंकि जो आप पञ्चागीकी श्रद्धा वाले आत्मार्थी तथा न्यायमें प्रवर्तने वाले होवो तबतो जो जो मैंने पर्युषणा विचारके लेखकी पंक्ति पंक्तिकी शास्त्रानुसार युक्ति पूर्बक समालोचना करके आपके लेखोंको उत्सूत्र भाषण रूप प्रत्यक्ष मिथ्या ठहराये है और सत्य बातोंको प्रगट करी है उसीको आद्यन्त पर्यंत पढ़के अपनी उत्सूत्र भाषणोंकी और प्रत्यक्ष मिथ्या लेखोंके भूलों की श्री चतुर्विध संघ समक्ष आलोचना लेकर शास्त्रानुसार युक्ति पूर्वक सत्य बातोंको ग्रहण करो पीछे मेरे लेखकी समालोचना करनेकी आपमें योग्यता प्राप्त होवे तब मेरे लेखकी समालोचना करनेको तैयार होना चाहिये। इतने परभी पर्युषणा विचार के सब लेखोंको आप सत्य समझते होवें तो पंक्ति पंक्तिके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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