Book Title: Bruhat Paryushana Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Jain Sangh

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Page 530
________________ [ ४२६ ] का धर्मलाभ पाठकवर्गके प्रति लेखकदेताहै) इस रीति से सातवें महाशयजीने पर्युषणाविचारके लेखको पूर्ण किया । अब ऊपर के लेखको समीक्षा करते हैं कि-मच्छ के पक्षपातको स्न हरागसे असत्यको सत्यमाम करके गतानुगतिक गडरीह प्रवाहवत् अन्ध परम्पराकोही मानने वाले मिथ्या दृष्टि कहे जाते हैं इसलिये तत्वान्वषी बन करके शास्त्रानुसार युक्ति सम्मत सत्य बातोंका निर्णयपूर्वक ग्रहण करना सोआत्मार्थियोंका काम है इसलिये पक्षपात रहित पर्युषणा विचारके निबन्धको पढ़ा तो साफ मालूम हुआ कि पर्युषणा विचारके लेखकने अपनी अज्ञानताके कारणसे अपने गच्छका पक्षपात करके अन्ध परम्पराका मिध्यात्वको बढ़ानेके लिये पं० हर्ष भूषणजीकी धर्मसागरजीकी और विनयविजयजी avrrint, उत्सूत्र भाषणोंकी कल्पनायोंको सत्य मानकर श्रीतीर्थंकर गणधरादि महाराजोंकी आज्ञाको उत्थापन करके पर्युषणा विचारके लेखमें केवल शास्त्रोंके विरुद्ध सूत्र भाषणोंकी कल्पनायें भरी हुई होनेसे गच्छ पक्षके मिथ्या आग्रह करनेवाले बालजीवोंको श्री जिमाज्ञासे भ्रष्टकरके मिथ्या त्वमें फंसाने वाला और खास पर्युषणा विचारके डेखकको संसार वृद्धिका हेतु भूत प्रत्यक्ष देखनेमें आया इसलिये पर्युषणा विचारके लेखक के तथा अन्य आत्मार्थियोंके उपकारके लिये उसीकी समालोचना करके निष्पक्षपाती पाठक गणको सत्यबात दिखाई है सो इसको पढ़कर पर्युषणा विचारके लेखक वगैरह यदि आत्मार्थि होवेंगे तब तो गच्छके पक्षपात का आग्रहको न रक्खके असत्यको छोड़कर सत्यको ग्रहण करके अपनी भूलोंको सुधारेंगे और अपनी विद्वत्ताके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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