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[ ४२३ ] बढ़ाने के लिये शास्त्रों के आगे पीछेके सब पाठोंको छोड़ करके उसीके बीचमेंसे बिना सम्बन्धके अधूरे पाठके फिर उलट अर्थ करके उत्सूत्र भाषणोंसे तथा कुयुक्तियोंसे भोले जीवोंकी सत्य बातों परसे श्रद्धा भ्रष्ट करके अपने मिथ्यात्वके पाखण्ड में गेरके संसार वृद्धिका कारण करते हैं तो भी हितोपदेशसे अच्छा किया ऐसाअज्ञताके कारणसे वृषा पुकार करते हैं।
तैसे ही पर्युषणा विचारके लेखकने भी किया, अर्थात अपने कदाग्रहमें मुग्ध जीवोंको फंसाने के लिये श्रीनिशीप चूर्णि वगैरह शास्त्रोंके आगे पीछेके सब पाठोंको छोड़ करके उसीके बीचमेंसे शास्त्रकारोंके विरुद्धार्थमें बिना सम्बन्धके अधूरे पाठ लिखके उलटे अर्थ करके उत्सूत्र भाष. णोंकी तथा कुयुक्तियों की कल्पनायोका पर्युषणा विचारक लेखमें संग्रह करके भी अभिनिवेशिक मिथ्यात्वसे हित बदिसे विषय लिखनेका ठहराते हैं सो कदापि नहीं ठहर सकता क्योंकि हितबुद्धिके बहानेमिथ्यात्व के पाखण्डकी रद्धिका कारण किया है इसलिये भव्यजीवोंके उपकारके लिये पर्युषणा विचारके लेख कीशास्त्रानुसार युक्तिपूर्वक समालोचना करनी मेरेको सचित थी सो करी है जिसपर भी शास्त्रमार्गसे विपरीत न चलनेके लिये सावधानी रखनेका सातवें महा. शयजी लिखते हैं इसपर भी मेरेको इतनाही कहना है किखास आपही अभिनिवेशिक मिथ्यात्वसे (शास्त्रानुसार युक्ति पूर्वक अधिक मासकी गिनती प्रमाण तथा श्रावण वृद्धिसे ५० दिने दूसरे श्रावणमें पर्युषणा और मासवृद्धिसै १३ मासके तामणे वगैरह) सत्य बातोंको ग्रहण नहीं करते हुए अपने
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