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[ ४१८ ] षणा करनेमे आतीथी तथा वर्तमानकालमें दो श्रावण होनेसे दूसरे श्रावणमें पर्युषणा करने में आती है इसलिये मासद्धि होतेभी भाद्रपद प्रतिबद्ध पर्युषणा नही ठहर सकती है किन्तु दिनोंके प्रतिबद्धही गिननेसे जहां व्यवहार से ५० दिन पूरे होवे वहांही करनी उचित है इतने परभी सातवें महाशयजी अपने कदाग्रहके हठवादसे शास्त्रोंके प्रमा. णोंको छोड़ करके नैमित्तिक कार्यों की तरह दूसरे भाद्रपद में पर्युषणा करनेका ठहराते हैं तोभी उन्होंको प्रत्यक्ष विरोध आता है सोही दिखावते हैं कि-खास सातवें महाशयजीके पूर्वजने अधिक मास होनेसे कृष्ण पक्ष के नैमित्तिक कार्य प्रथम मासके प्रथम कृष्ण पक्ष में करनेका कहा है उसी मुजब सातवें महाशयजी पर्युषणाकरें तब तो पर्यषणाके आठदिनोके उच्छव का भङ्ग हो जावेगा और पर्युषणामे पहिले कृष्णपक्षके चार दिनोके कार्य प्रथम भाद्रपदमें करने पड़ेगे फिर एक मास पर्यन्त मौन धारण करके पर्युषणामें पिछाड़ी के चार दिनोंके कार्य दूसरे भाद्रपदमे करें तब तो सातवें महाशयजीकी खूब विटंबना होजावे से तत्वज्ञ विवेकी जन स्वयं विचार लेवेगे:... और ओलियों छठे महीने करनेमें आती है परन्तु अधिक मास होनेसे सातवें महीने करने में आती है तथा चौमासी चौथै महीने करनेमें आता है परन्तु अधिक मास होनेसे पांचवें महीने करने में आता है सो तो न्यायपूर्वक युक्ति की बात है परन्तु पर्यषणा तो आषाढ चौमासीसे ५० दिने अपश्य करके करनेका कहा है, इसलिये अधिक मास हो तो भी ५० वें दिनकी रात्रिको भी उल्लंघनकरनेसे मिथ्या.
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