Book Title: Bruhat Paryushana Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Jain Sangh

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Page 524
________________ [ ४२० ] इसलिये भोले जीव जानते है कि सातवें महाशयजीकी तरफ से पर्युषणा विचारका लेख प्रगट हुवा है सेा शास्त्रानुसार युक्ति पूर्वकही होगा परन्तु उसी लेखको तत्वज्ञ पुरुषों ने देखा तो निष्केवल शास्त्रकार महाराज के विरुद्धार्थमें तथा उत्सूत्र भाषणोंके संग्रह वाला और कुयुक्तियोंके संग्रह वाला होनेसे अज्ञानी जीवांका मिथ्यात्वमें फंसाने वाला मालूम हुवा तब उसीकी शास्त्रानुसार युक्ति पूर्वक समीक्षा मेरेको भव्यजीवों के उपकार के लिये इतनी लिखनी पड़ी है इसको बांधकर सातवें महाशयजोको अपनी विद्वत्ताके अभिमानसे और अभिनिवेशिक मिथ्यात्वके करणसै अपना मिथ्यापक्ष के कल्पित कदाग्रहको छोड़कर सत्य बात ग्रहण करनी बहुतही मुश्किल होनेसे ( कदाग्रह न छूटता भले स्व परंपरा पालो ) ऐसे अक्षर लिखके कदाग्रहको तथा शास्त्रों के प्रमाण बिना कल्पित बातोंकी अंध परम्पराको पुष्ट करके ओले जीवों को उसी में फंसाये और आपनेभी उसीका शरणाले करके अपना अन्तर मिथ्यात्त्वको प्रगट किया इसलिये इस ग्रंथकारका सब सज्जन पुरुषोंको यही कहना है कि जो अल्पकर्मी मोक्षाभिलाषी आत्मार्थी होगा सोतो शास्त्रों के प्रमाण विरुद्ध अपने अपने कदाग्रहकी अन्ध परंपरा के पक्षका आग्रह में तत्पर न बनके इस ग्रंथके सम्पूर्ण पढ़ करके पंचांगी प्रमाण पूर्वक युक्ति सहित सत्य बातोंको ग्रहण करेगा दुसरोंसे करावेगा और बहुल कर्मो मिथ्यात्वी होगा सोता शास्त्रानुसार युक्तिपूर्वक सत्य बातोंको जानकर केभी उसीको ग्रहण न करता हुआ अपने कदाग्रहकी अन्ध परम्परामे रहकर उसीको पुष्ट करने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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