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कर सत्य बातको ग्रहण करना चाहिये जिसमें आत्मकल्याण है नतु अधिक मासके गिनतीका निषेध रूप अंध परंपराका मिथ्यात्व में ;
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और इसके आगे फिरभी मासष्टद्धि होतेभी भाद्र पदमें पर्युषण ठहराने के लिये पर्युषणा विचारके सातवें पृष्ठके अन्त ते आठवें पृष्ठ तक लिखा है कि- (पर्यवणाकल्पचूर्णि तथा महानिशीथचूर्णिके दसवें उद्देशेमें इसी तरहका पाठ है, “अम्नया पज्जोसवणादिवसे आगए अज्नकालगेण सावाहणो भणिओ, भट्टवयजु रहपञ्चमीए पज्जोसवणा " इ०
तथा “ तत्थ य सालवाहणो राया, सेा अ सावगो, सो अ कालगज्ज' इंतं सैाऊण निगओ, अभिमुद्दो समयसंघो अ महाविभूईए पविट्ठो कालगज्जो, पविट्ट हिंअभणिअं भद्द्वयमुद्ध पचमीपज्जोसविज्जई समण संघेण पडिवरणं ता रराणामणिअं तद्दिवसं गम लोगानुवत्तीए इंदो अणुजाणेयबो होहिति साहू चेइए अणुपज्जुवासिस्स तो हट्ठीए पज्जेोसवणा किज्जइ, आयरिएहिं भणिअं न वट्ठिति अतिक्कनितुं, ताहे रगणा भणिअं ला अणागए चउत्थीह पज्जोसबिति, आयरिहि भणिअं, एवं भवड, ताई उत्थीए पज़्जोसवियं, एवं जुगप्पहाणेहिं कारणे चउत्पी पवत्तिआ, सा वाणुमता सव्वसाहूणमित्यादि ।
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ऊपरकी पाठ साक्षात् सूचित करती है कि भाद्र खुदी atest सम्बत्सरिक प्रतिक्रमण वगैरह करना चाहिये । किन्तु जब दो श्रावण आवें तो श्रावण सुदी चौथके रोज साम्वत्सरिक कृत्य करे ऐसा तो पाठ कोई सिद्धान्तमें नहीं है तो आग्रह करना क्या ठीक है ? दो भाद्र भावेंता
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