Book Title: Bruhat Paryushana Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Jain Sangh

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Page 519
________________ [ ४९५ ] वालोंको अनेक उपद्रव दिखाने और आप दोन मासों को लिखके उसी मुजब वर्ताव करते भी, उसीको गिनतीमें न लेते हुये प्रत्यक्ष माया वृत्तिसे दूषण रहित बनना से सब बाल जोवोंको कदाग्रहमें फंसाकर उत्सूत्र भाषणसे संसार परिभ्रमणका हेतु है सो तो निष्पक्षपाती तत्वज्ञ पुरुष स्वयं विचार लेवेंगे;____और मास वृद्धि होनेसे मास तिथि नियत सब नैमित्तिक कृत्योंको दूसरे मासमें करनेका सातवें महाशयजी ठहराते हैं से भी अन्जताका सूचक है क्योंकि वर्तमानमें मास इद्धि होनेसे मास तिथि नियत कृत्य, आगे पीछे दोनों मासमें करनेमें आते हैं याने कृष्ण पक्षके तिथि नियत कृत्य प्रथम मासके प्रथम कृष्ण पक्षमें करनेमें आते हैं और शुक्ल पक्षके तिथि नियत कृत्य दूसरे मासके दूसरे शुक्ल पक्षके करने में आते हैं : मित्रवत् न्यायसे अर्थात्-एक नगरमें सज्जनादि गुनगुत व्यवहारिया रहता था उसीने अपने भोजनकी तैयारी करी उसी समय उसीके मित्रका आगमन हुआ तब दूसरा भोजन बनानेका अवसर न होनेसे अपने भोजनमें से आधा भित्रको दिया और आधा आपने ग्रहण किया,उसी दृष्टान्तके न्यायसे एक नगर रूपी संवत्सर उसीमें सज्जनादि गुनयुक्त व्यवहारियावत् मास उसीके भोजन रूपी नैमित्तिक कृत्य और জঘিষ্ণ লাল কী লিঙ্কা জালাল হীন জাঘ জাথ नैमित्तिक कार्य बांट लिये समजो जैसे दो कार्तिक होगे तब श्रीसंभवनाथस्वामीके केवल ज्ञान कल्याणकके श्रीपनप्रभुजीके जन्मकल्याणकके तथा दीक्षाकल्याणकके, श्रीने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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