Book Title: Bruhat Paryushana Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Jain Sangh

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Page 518
________________ ४१४ ] रोध न रहे । दो श्रावण हो,अथवा भाद्र हो तथा दो आश्विन होतोभी कोई विरोध नहीं रहेगा। तीर्थंकर महारा जकी आज्ञा सम्यक प्रकारसे पलेगी) अपरके लेखमें सातवें महाशयजीने अधिक मासको निःसत्व मान कर गिनतीमें निषेध किया तथा गिनतीमें लेनेवालाँको अनेक उपद्रव दिखाये और गिनतीमें नहीं लेनेवालोंको दूषण रहित ठहराये फिर मास वृद्धि होनेसे दूसरे मासमें नैमित्तिक कृत्य करनेका भी ठहराया इसपर मेरेको बड़ेही आश्चर्य सहित खेदके साथ लिखना पड़ता है कि सातवें महाशयजीके विद्वत्ताको विवेक बुद्धि किस खाइमें चली गई होगी सो ऊपरके लेखमें विवेक शून्य होकर पूर्वापरका विचार किये बिनाही उटपटांग लिख दिया क्योंकि देखो सातवें महाशयजी यदि अधिक मासको निःसत्व मान करके गिनतीमें नहीं लेते होवे तबतो दो प्रावण, दो भाद्र, दो आश्विन, दो फाल्गुण और दो आ. षाढ़ मासोंका उन्हांका लिखनाही वन्ध्याके पुत्र समान हो जाता है और मास शुद्धि होनेसे दो श्रावणादि लिखते हैं तथा उसी मुजबही वर्ताव करते हैं तब तो अधिक मासको निःसत्व मान करके गिनतीमें निषेध करना ( गिनतीमें नहीं लेना ) सो ममजननीवंध्या समान बाल लीलाकी तरह होजाता है क्योंकि दो श्रावणादि लिखके उसी मुजब वर्ताव करना फिर मास इद्धि की गिनती निषेध करना यहतो विवेक शून्यके सिवाय और कौन होगा क्योंकि दो प्रावणादि लेखके उसी मुजब वर्ताव करते हैं इसलिये पीकी गिनतीका निषेध करना तथा गिमतीमें डेमे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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