________________
[ ३८ ] कालमें नारकी जीवोंको तथा अढाई द्वीपके बाहेर रहने वाले जोवोंको क्षधा वेदना तथा पापबन्धन नहीं होनेका लिखते हैं सो अज्ञताके सिवाय और क्या होगा सो .. पाठकवर्ग स्वयं विचार लेवेंगे ;
और ( देवपूजा प्रतिक्रमणादि दिनचे बद्ध है लास बद्ध नही है नित्य कर्मके प्रति अधिकमास हानिफारक नही है ) सातवें महाशयजोकर यह भी लिखना मायावृत्तिसे बालजीवोंको भ्रनानेके लिये मिथ्या है क्योंकि देवपूजा प्रतिक्रमणादि जैसे दिनसे प्रतिबद्धवाले है तैोही पक्ष, मासादिसे भी प्रतिबद्ध वाले है इसलिये पक्ष, मासादिने जितनी देव पूजा और जितने प्रतिक्रमणादि धर्मकार्य किये जावे उतनाही लाभ मिलेगा और पुण्य अथवा पाच कार्य से आत्माको जैसे दिवस लामकारक अधवा हानिकारक होता है तैसेही पक्ष मासादिमें पुण्य अथवा पाप होनेसें पक्ष मासादि भी लाभकारक अथवा हानिकारक होता है इसलिये पक्ष मासादिकके पुण्य कायौंकी अनुमोदना करके सस पक्ष मासादिको अपने लाभकारी माने जाते हैं तैसेही पक्ष मासादिमें पापकार्य हुवे होवे उसीका पश्चात्ताप करके उसीकी आलोचना लेने में आती है और उसी पक्ष मासादिको अपने हानिकारक समझे जाते हैं और एक पक्षके १५ राइ तथा १५ देवसी और एक पाक्षिक प्रतिक्रमण करने में आता है तैसेही एक मासमें ३० राइ तथा ३. देवती
और दो पाक्षिक प्रतिक्रमण करने में आते हैं मो तो प्रत्यक्ष भनु सबसे प्रसिद्ध है इसलिये एक मातके ३० दिनों में सब संसार व्यवहार और पुण्य पापा कार्य हाते तोता
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com