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भोषमा लिखके अधिक मासकी हिलना करो और संसार वृद्धिका कुछ भी भय न किया सो वड़ेही अफसोसकी बात है;
और वैष्णवादि लोग भी अधिकमासको दानपुण्यादि धर्मकाय्यौमें तो बारह मासांसे भी विशेष उत्तम " पुरुषो - तम अधिक मास” कहते हैं और उसीकी कथा सुनते हैं और दानपुण्यादि करते हैं और पञ्चाङ्गमें भी तेरह मास, aatr पक्षका वर्ष लिखते हैं सो तो दुनिया में प्रसिद्ध है तथापि सातवें महाशयजी अधिक मासको नपुंसक कहके उसको गिनती में निषेध करते हुवे, तेरहमा अधिक मासको सर्वथाही उड़ा देते हैं और दुनियाके भी विरुद्धका कुछ भी भय नहीं करते हैं से भी अभिनिवेशिक मिथ्यात्वका नमूना है क्योंकि सातवें महाशयजी काशी में बहुत वर्षोंसे ठहरे हैं और अधिक मास होने से पुरुषोत्तम अधिक मासके महात्म की कथा काशीमें और सब शहरोंमें अनेक जगह बंधाती है सो तो प्रसिद्ध है और जैनशास्त्रानुसार तथा लौकिक शास्त्रानुसार धर्मकायों में अधिक नाम श्रेष्ठ है, तथापि सातवें महाशयजी नपुंसक ठहराते हैं से तो ऐसा होता है कि
किसी नगर में एक शेठ रहता था, सो रूपलावण्य करके युक्त और धर्मावलम्बी था इसलिये उसीने परस्त्री गमनका और वेश्या के गमनका वर्जन किया था, सो शेठ किसी अवसर में बजारके रस्ते से चला जाता था उसी रस्तेमें कोई व्यभिचारिणी स्त्रीका और वेश्याका मकान आया, तब वह शेठ उसीका मकान के पासमें हो करके आगेको चला गया परन्तु उसीके मकानपर न गया तब उस शेठको देखकर वह
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