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अपने घरोंके ऊपरका वर्षा संबंधी पाणी निकलने के लिये प्रणा लिका करेंगे, और सब घर का पानी निकलनेके वास्ते नवीन खाल बनावेंगे अथवा पहिलेका खाल होवे उसीका सुधारा करेंगे, और उपयोगी सचित वस्तुओंको अचितकरके रखेंगे, इत्यादि अनेक तरह के आरम्भादि कार्य पहिलेसेही अपने लिये करलेवेंगे इसलिये उपरोक्त दोषोंका निमित्त कारण न होने के वास्ते आषाढ़ चौमासीसे १ मास और २० दिन गये बाद भगवान् पर्युषणा करते थे, ॥२॥ जैसे १ मास और २० दिन गयेबाद भगवान् पर्युषणा करते थे तैसेहीगणधरमहा राजभी १ मास और २० दिन गयेबाद पर्युषणा करते थे॥३॥
जैसे गणधर महाराज पर्युषणा करतेथे, तैसेही गणधरमहा. राजके शिष्य प्रशिष्यादि भी पर्युषणा करते थे ॥१॥ जैसे गणधर महाराजके शिष्यादि पर्युषणा करते थे तैसेहीस्थविर भी करते थे ॥५॥ जैसे स्थविर करते थे तैसेही बर्तमानमें श्रमण निर्ग्रन्थ विचरने वाले हैं सो भी उपरोक्त विधिके अनुसार पर्युषणाकरते हैं॥६॥ जैसे वर्तमानमें प्रमण निग्रन्ध पर्युषणा करते हैं तैसेही हमारे आचार्य उपाध्याय ५० दिने पर्युषणा करते हैं ॥७॥ जैसे हमारे आचार्यउपाध्याय ५२ दिने पर्युषणा करते हैं तैसेही हमभी आषाढ़ चौमासीसे ५० दिने पर्युषणा करते हैं जिसमें भी कारण योगे ५२ दिन के भीतर पर्युषणा करना कल्पता है परन्तु कारण योगसे ५० वे दिनकी रात्रिकोभी उल्लंघन करना नहीं कल्पता है, याने ५० वें दिनकी रात्रिको उल्लंघन करनेवाले को जिनाज्ञा विरुद्ध दूषणकी प्राप्ति होवे। ... अब देखिये उपरोक्त सुप्रसिद्ध श्रीकल्पसूत्रानुसार दूसरे
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