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[ ४८ ] मासकों प्रमाण करके गिनती में मंजूर करते हैं जिन्होंकों आज्ञा भङ्गका मिथ्या दूषण लगाके उलटा निषेध करते हैं फिर आप आज्ञाके आराधक बनते हैं यह कितनी बड़ी आश्चर्य्यकी बात हैं।
श्रीअनन्त तीर्थङ्करादिकोंने अधिकमासको गिनतीमें प्रमाण किया हैं इसलिये जिनाजाके आराधक आत्मार्थी पुरुष कदापि निषेध नही कर सकते हैं तथापि वर्तमानमें जो अधिक मामको गिमतीमें निषेध करते है जिन्होंकों श्रीतीर्थङ्कर गणधर पूर्वधरादि पूर्वावार्योंकी और अपने पूर्वजोंकी आज्ञाभङ्गके सिवाय और क्या लाभ होगा सो निपक्षाती आत्मार्थी पाठकवर्ग स्वयं विचार लेवेंगें। . प्रश्न:----अजी तुम तो श्रीअनन्ततीर्थङ्कर गणधर पूर्वधरादि पूर्वाचार्योजी की शाक्षिसें अधिकमासको दिनोंमें पक्षोंमें, मासोंमें, वर्षों में, गिनती करनेका प्रत्यक्षप्रमाण उपरोक्त शास्त्रों के प्रमाणसें दिखाया हैं परन्तु वर्तमानिक श्रीतपगच्छादिवाले अधिकमास तो एककाल चूलारूप हैं इसलिये गिनतीमें नही लेना एसा कहते हैं सो कैसें । ___ उत्तरः-भो देवानुप्रिये वर्तमानिक श्रीतपगच्छादिवाले अधिकमासको कालचूला कहके गिनतीमें निषेध करते हैं सो कदापि नही हो सकता है क्योंकि अधिकमासको कालचूला किस कारणसें कही हैं जिसका अभिप्राय और कालचूला कहनेसें भी विशेष करके गिनती करने योग्य हैं तथा कालचूलाकी ओपमा बहुत उत्तम श्रेष्ठ शास्त्रकारोंने दिवी हैं सो हमतो क्या कुल जैन श्वेतांबर जिनाज्ञाके आराधन करनेवाले आत्मार्थी सबी पुरुषोकों मान्य करने योग्य हैं "
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