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[ १७९ ] जो जो कल्पना मासवृद्धि होते भी पर्युषणाके पिछाड़ी 90 दिन रखने के लिये करेंगे सो सो सबीही उत्सूत्र भाषण रूप भोले जीवोंको मिथ्यात्वमें गेरने वाले होवेंगें इसलिये श्रीजिनेश्वर भगवान्की आज्ञाके आराधके सत्यग्राही सर्व. सज्जन पुरुषोंसे मेरा यही कहना है कि श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रमें मासवृद्धिके अभावसे ७० दिनके अक्षर देखके मास वृधि होते भी आग्रह मत करो और भासवृद्धिको मंजूर करके दूजा श्रावणमें अथवा प्रथम भाद्रपदमें पचास दिने पर्युषणा करके पिछाड़ी १०० दिन मान्यकरो जिससे उत्सूत्र भाषक न बनके श्रीजिनाज्ञाके आराधक बनोंगे मेरा तो येही कहना है। मान्य करेंगे जिन्होंकी आत्माका सुधारा है इतने पर भी जो हठग्राही नही मानेगे जिन्होंकी सम्यक्त्व रत्न बिना आत्माका सुधारा कैसे होगा सो तो श्रीज्ञानीजी महाराज जाने ;-..
और श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रका पाठपर न्यायाम्भोनिधि जीने अपनी चातुराई प्रगट किवी है कि--( हे परीक्षक अब इस पाठके. विचारणेसें तुमको मास वृद्धि हुये कार्तिक सम्बन्धी कृत्य आश्विन मासमें करना पड़ेगा और कार्तिक मासमें करोंगे तो १०० रात दिनकी प्राप्ति होनेसे सिद्धान्तसे विरुद्ध होगा फिर तो ऐसा हुवा कि एक अङ्गको आच्छादन किया और दूसरा अङ्ग खुल्ला होगया तात्पर्य कि-तुमने आधाभन म हुवे इस वास्ते यह पक्ष अङ्गीकार किया तो भी आज्ञा भङ्गरूप दूषण तो आपके शिरपर ही रहा ) इस लेखकी समीक्षा अब सुन लीजियें-हे पाठकवर्ग देखो न्यायांभोनिधिजीने तो शुद्धसमाचारी कारको दूषित ठह
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