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[ ३५१ ] उपर ही छपगया है उसीको पढ़ करके भी सातवें महाशय जी अपने कदाग्रहके वस होकरके शास्त्रानुसार सत्यबात को प्रमाण नहीं करेंगे तो अपने गच्छके प्रभाविक पुरुषों के वाक्य पर तथा श्रीयशोविजयजीके नामसे पाठशाला स्थापन करी है उन महाराजके वाक्य पर और पञ्चाङ्गीके शास्त्रोंके पाठों पर श्रद्धा रखनेवाले आत्मार्थी है ऐसा कोई भी विवेकी तत्त्वज्ञ पाठकवर्ग नही मान सकेगा जिसके नामसें पाठशाला स्थापन करी है उसी महाराजके वाक्य मुजब प्रमाण नही करना यह तो विशेष लज्जाका कारण है
इत्यादि अनेक बातों में सातवें महाशयजी अभिनिवे. शिक मिथ्यात्व सेवन करते हुवे मूलमन्त्ररूपी पञ्चाङ्गीके शास्त्रोंके पाठोंको जानते हुवे भी अलग छोड़ करके शास्त्रोंके प्रमाण बिना अपनी मतिकल्पनासें कुयुक्तियों का सहाराले करके उत्भूत्र भाषणमें वर्तते हैं और पञ्चाङ्गी के प्रमाण सहित शास्त्रानुसार युक्तिपूर्वक ऊपरोक्ता दि अनेक बातोंको प्रमाण करने वालोंको झूठे ठहरा करके मिथ्या दूषण लगा कर ऊपरोक्त बातोंको निषेध करते हैं इसलिये श्रीजिनेश्वरभगवान्की आज्ञानुसार वर्त्तने वालेकी वृथा निन्दा करके शास्त्रानुसार ऊपरोक्तादि बातों के विरुद्ध अविसंवादी श्रीजैनशासनमें विसंवादरूपी मिथ्यात्वका झगड़ा बढ़ानेसें अविसंवादी श्री जैनशासनरूपी सत्यधर्मकी अवहेलना करने वाले भी सातवें महाशयजीही है। और पञ्चाङ्गीके शास्त्रों के पाठोंकों प्रत्यक्ष देखते हुवे भी प्रमाण नहीं करते है और अपना कदाग्रहकी कल्पित कुयुक्तियों को आगे करके दृष्टिरागी झूठे पक्षग्राही बालजीवोंकों मिथ्यात्वमें गेरते हैं
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