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[ ३५७ ] करके विष मिश्रित दवा देकर रोगीको मृत्युके सरण प्राप्त करने वाला वैद्य नाम धारक पुरुष महापापी होता है तसेही कर्मरूपी रोगसे पीड़ित व्यजीवोंको उत्तम रीतिका उपदेश देनेके भरोसें विश्वासघातसे उत्सूत्र भाषणरूप कल्पित कुयुक्तियोंका विष मिश्रित उपदेश करके भव्य. जीवोंको श्रीजिनाजारूप सम्यक्त्वरत्न जीवतव्यसें भ्रष्ट करके मिथ्यात्वरूप मरणके सरण प्राप्त करनेवाला वेषधारी साधु नाम धारक पुरुष महापापी होता है तैसेही सातवेंमहाशयजीने भी पर्युषणा विचारके लेखमें अध्यजीवोंको उत्तम रीतिका उपदेश करनेके बहाने उत्सूत्र भाषणरूप कुतकोंका विष मिश्रित उपदेश करके भव्यजीवोंको मिथ्यात्वरुप मत्युके सरण प्राप्त किये है इसलिये भव्य जीवोंको मिथ्यात्वरूप पत्युके सरण प्राप्त कर.
के दोषाधिकारी सातवे महाशयजी है यदि सातवें महा. शपजीको अपरोक्त दूषणके फल विपाकका भय होवे तो अपने कत्यकी आलोचना लेवेंगे ;__ और अपने कदाग्रहकी कल्पित बातको जमानेके लिये उत्सूत्र भाषणको और कुयुक्तियोंकी बातें लिखनेवालेका परिणाम भी अच्छा नही होता है तथा क्रिया भी अच्छी नहीं होती है और उपयोग भी अच्छा नही होता है इसलिये पर्युषणा विचार लेखक अपनेको अच्छा इस फलको चाहना करते सो कदापि नही हो सकेगा किन्तु पर्युषणा विचारक लेखमें शास्त्रकारों के विरुद्धार्थ में उत्सूत्र भाषणोंकी तपा
युक्तियोंकी और शास्त्रानुसार वर्तने वालोंकी भूठी निन्दा करके मिया दूषण उगानेकी कल्पना भरी होने
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