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[ ३६८ नहीं ठहरेगा जब अधिक मास में विहार करके दूसरे गांव जावेगा तब उसीको दश कल्पि विहार हो जावेगा क्योंकि चारमास शीतकालके चारमास उष्ण कालके तथा एक अधिक मासका और एक वर्षाऋतुके चारमासका इस तरहसे अवश्य करके दसकल्पि विहार होता है तथापि नव कल्पि कहनेवाला तो प्रत्यक्ष माया सहित मिथ्याभाषण करनेवाला ठहरेगा सो पाठकवर्ग भी विचार सकते हैं और जैसे मास वृद्धि होनेसे दसकल्पि विहार करने में आता है तैसेही मा. सवृद्धि होनेसें तेरह मास छबीश पक्षोंकी गिनती करके उतनेही क्षामणे करने में आते हैं सो आत्मार्थी श्रीजिनेश्वर भगवान् की आज्ञाके आराधक सत्यग्राही भव्यजीव तो मंजूर करते हैं परन्तु उत्सूत्र भाषक कदाग्रही विद्वत्ता के अभिमानको धारण करनेवालोंकी तो बातही जुदी है। और अधिक मासकी गिनती श्रीतीर्थकर गणधरादि महा. राजोंकी कहीहुई है जिसको संसारगामी मिथ्यात्वी श्रीजि. मात्राका विराधकके सिवाय कौन निषेध करेगा और अधिक मासको माननेवालों को दूषण लगाकरके फिर आप निर्दूषण भी बनेगा। सो विवेकी पाठकवर्ग विचार लेखेंगे। और अधिक मासके कारणसे ही तेरह मास छबीश पक्षका अभिवर्द्धित संवत्सर श्रीअनन्त तीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंने कहा है इस लिये अवश्य करके पांच मासका एक अभिवर्द्धित चौमासा भी मामना चाहिये।
(शङ्का ) अधिक मासके कारणसें पांच मासका अभिबर्द्धित चौमासा किस शास्त्र में लिखा है।
(समाधाम) भो देवानुप्रिय ! ऊपर ही ३६३, ३६५ पष्ठ में
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