Book Title: Bruhat Paryushana Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Jain Sangh

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Page 474
________________ [ 10 ] अर्थ ग्रहण होता है इसलिये चौमासीमें और सांवत्सरिक कार्योंमें भी उतने ही मास पक्षोंकी भावना करने में आती है, - और जैसे चंद्रसंवत्सरमें-सांवत्सरिक प्रतिक्रमसमें क्षामणाधिकारे 'बारसरहं मासाणं ग्धीसरहं पक्वाणं तिन्निसयसढी राइंदियाणं' इत्यादि पाठ बोडके बारह मास, चौवीश पक्ष, तीन सौ साठ ( ३६० ) रात्रि दिनोंकी आलोचना करनेमें आती है और चौमासी प्रतिक्रमण में 'चउगहं मासाणं अट्ठरहं पक्खाणं वीसुत्तरसय राइंदियाणे' इत्यादि पाठ बोलके चार मास, आठ पक्ष, एक सौ वीश रात्रि दिनोंकी आलोचना करने में आती है, तैसे ही अभि. वर्द्धित संवत्सरमें भी सांवत्सरिक क्षामणाधिकारे 'तेरसगई मासाणं छठवीसरहं पक्षाणं तिलिसयणउ राइंदियाणं' इत्यादि पाठ बोलके तेरह मास,छवीश पक्ष, तीन सौ नब्बे (३९० ) रात्रि दिनोंकी आलोचना करने में आती है और अभिवर्द्धित चौमासेमें भी 'पंचरहं मासाणं दसरहं पक्लाणं पंचासुत्तरसय राइंदियाणं' इत्यादि पाठ बोलके पांच मास, दश पक्ष एक सौ पचास ( १५० ) रात्रि दिनोंकी आलोचना करने में आती है। ऊपरमें श्रीआवश्यकचूर्णि, श्रीप्रवचनसारोद्धार, श्रीधर्मरत्न प्रकरणवृत्ति और श्रीअभयदेवसूरिजीकृत समाचारी वगैरह शास्त्रों के प्रमाण प्रतिक्रमण संबंधी लिखने में आये हैं, उन्हीं शास्त्रोंके अनुसार ( संवच्छर ) संवत्सर शब्दके ऊपरोक्त न्यायानुसार चंद्र,अभिवर्द्धित इन दोनु संवत्सरोंका अर्थ ग्रहण होनेसे क्षामणा संबंधी जपरका पाठ अपरोक्त शास्त्रोंके अनुसार ही समझना । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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