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हठवादी पुरुषोंको तो श्रीप्रवचनसारोद्वार, तथा वृत्ति, और श्रीधर्मरत्नप्रकरण वृत्ति, और श्रीअभयदेवसूरिजी वगैरह पूर्वाचार्यै के बनाये समाचारियोंके ग्रन्थ और प्रतिक्रमण गर्भ हेतु, श्रीश्राद्धविधिवृत्ति, वगैरह शास्त्रोंके अनुसार सांवत्सरी में बारह मास चौवोश पक्षके ज्ञामणा करनेका ही नहीं बनेगा क्योंकि इन शास्त्रों में तो बारह मास चौवीश पक्ष भी नहीं लिखे हैं तो फिर बारह मासादिका अर्थ ऊपर के शास्त्रोंके अनुसार कैसे मान्य करेंगे और पांचों ही प्रतिक्रमणोंकी विधि ऊपरके शास्त्रों में कही है इसलिये ऊपर कहे सो शास्त्रोंके अनुसार पांच प्रतिक्रमणोंकी विधिको तो मान्य करनीही पड़ेगी और संवत्सर शब्द से बारह मासका अर्थ ग्रहण करोंगे तो मासवृद्धि होनेसें तेरह मासका भी अर्थ ग्रहण करनाही पड़ेगा सो तो न्यायकी बात हैं और पहिलेके काल में ऐसी कुतर्के करनेवाले विवेकशून्य कदाग्रही पुरुष भी नहीं थे नहीं तो पूर्वाचार्यजी जरूर करके विस्तारसें खुलासा लिख देते क्योंकि जिस जिस समयमें जैसी जैसी कुतकें करनेवाले पूर्वाचाय्यैौ के समय में जो जो हठवादी पुरुष थे जिन्होंको समझानेके लिये वैसे वैसेही खुलासा पूर्वाचाय्याने विस्तारसे किया है जैसे कि ईश्वरवादी, नास्तिक, वगैरहो के लिये और श्रीजिनमूर्त्तिको तथा जिनमूर्त्तिको पूजा सम्बन्धी शास्त्रोक्त विधिको वर्णन करी हैं, परन्तु मूर्तिके और पूजाके सम्बन्धमें वर्त्तमान समय जैसी युक्तियां लिखने की जरूरत नहीं थी जिसका कारण कि उस समय श्रीजिनमूर्तिके तथा उसीकी पूजा के निषेधक ढूंढिये, तेरहपन्थी, बगैरह
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