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और अक्षयतृतीया दीपालिकादि सम्बन्धी आगे लिखनेमें आवेगा । और ( दिगम्बर लोग भी अधिक मासको तुच्छ मानकर भाद्रपद शुक्ल पञ्चमीसे पूर्णिमा तक दशलासfusपर्व मानते हैं ) सातवें महाशयजीका इस लेखपर मेरेको इतनाही कहना है कि-दिगम्बर लोग तो केवलीको आहार, स्त्रीको मोक्ष, साधुको वस्त्र, श्रीजिनमूर्त्तिको आभूषण, नवाङ्गी पूजा वगैरह बातोंको निषेध करते हैं और श्वेताम्बर मान्य करते हैं इसलिये दिगम्बर लोगोंकी अधिक are सम्बन्धी कल्पनाको श्वेताम्बर लोगोंको मान्य करने योग्य नहीं है क्योंकि श्वेताम्बर में पञ्चाङ्गी के अनेक प्रमाण अधिक मासको गिनती में करने सम्बन्धी मौजूद हैं इसलिये दिगम्बर लोगोंकी बातको लिखके सातवें महाशयजीने अधिक मासको गिनती में लेनेका निषेध करनेको उद्यम करके बालजीवोंको कदाग्रह में गेरे हैं सो उत्सूत्र भाषणरूप है और सातवें महाशयजी दिगम्बर लोगोंका अनुकरण करते होंगे तब तो ऊपरकी दिगम्बर लोगोंको बातें सातवें महाशयजीका भी मान्य करनी पड़ेंगी यदि नहीं मान्य करते होवें तो फिर दिगम्बर लोगोंकी बात लिखके वृथा क्यों कागद काले करके समयको खोया सो पाठकवर्ग विचार लेवेंगे
और आगे फिर भी पर्युषणा विचारके पाँचवे पृष्ठको 9 वीं पंक्ति से कटु पृष्ठको पाँचवीं पंक्ति तक लिखा है कि[ अधिकमास संक्षी पञ्चेन्द्रिय नहीं मानते, इसमें कोई आश्चर्य नहीं है क्योंकि एकेन्द्रिय वनस्पति भी अधिक मासमें नहीं फलती । जो फल श्रावण मासमें उत्पन्न होने
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