________________
वाला होगा वह दूसरेही प्रावणमें उत्पन्न हागा न कि पहिलेमें। जैसे दो चैत्र मास होगे तो दूसरे चैत्रमें आम्रादि फलेंगे किन्तु प्रथम चैत्रमें नहीं। इस विषयको एक गाथा आवश्यकनियुक्तिके प्रतिक्रमणाध्ययनमें यह है"जइ फुल्ला कणिआरया चूअग अहिमासयंमि घुटुमि । तुह न खमं फुल्लेउं जइ पञ्चंता करिति इमराई" ॥ १॥ ___ अर्थात अधिकमासकी उद्घोषणा होनेपर यदि कर्णि. कारक फूलता है तो फूले, परन्तु हे आम्रवृक्ष ! तुमको फूलना उचित नहीं है, यदि प्रत्यन्तक ( नीच ) अशोभन कार्य करते हैं तो क्या तुम्हें भी करना चाहिये !, सज्जनाको ऐमा उचित नहीं है।
इम बातका अनुभव पाठकवर्ग करें यदि अभ्यासको सफलता हो तो जैसे कुशाग्रबुद्धि आज्ञानिबद्ध हृदय आचायोंने अधिक मासको गिनती में नहीं लिया है उसी तरह तुम्हें भी लेखामें नहीं लेना चाहिये। जिससे पूर्वोक्त अनेक दोषोंसे मुक्त होकर आज्ञाके आराधक बनोगे।] __ ऊपरके लेखकी ममीक्षा करके पाठकवर्गको दिखाता हूं कि--हे सज्जन पुरुषो सातवें महाशय जीने गच्छ पक्षी बालजीवोंको मिथ्यात्वमें फंसानेके लिये ऊपर के लेख में
था क्यों परिश्रम किया है क्योंकि प्रथम तो ( अधिक मास संज्ञी पञ्चेन्द्रिय नही मानते ) यह लिखनाही प्रत्यक्ष महा मिथ्या है क्योंकि सज्ञी पञ्चेन्द्रिय सब कोई अधिक मासको अवश्य करके मानते हैं सो तो प्रत्यक्ष अनुभवसेही सिद्ध है और 'एकेन्द्रिय वनस्सति अधिक. मासमें नही लनेका' ति महाशयजी लिखते हैं सो भी
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com