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[ ३८ ] नयकी अपेक्षा केलिये आगे लिखंगा- अब सत्यग्राही तत्त्वज्ञ पुरुषोंको न्यायदृष्टिसे विचार करना चाहिये कि अधिक मासके कारणसें चौमासीमें पांच मासादिसें और सांवत्सरिमें १३ मासादिमें क्षामणे करनेका अनेक शास्त्रोंके प्रमाणानुमार युक्तिपूर्वक और प्रत्यक्ष अनुभवसे स्वयं सिद्ध है सो तो मैंने कपरमें ही लिख दिखाया है परन्तु सातवें महाशयजी कोई भी शास्त्रके प्रमाण बिना पांच मास होते भी चार मासके क्षामण करने का और तेरह मास होते भी १२ मासके क्षामणे करनेका लिख दिखाके फिर शास्त्रानुसार पांच मासके और तेरह मासके क्षामणे करने वालोंको दूषण लगाते हैं सो अपने विद्वत्ताकी हांसी करा करके, संसार वृद्धिके हेतुभूत उत्सूत्र भाषणके सिवाय और क्या होगा सो पाठकवर्गको विचार करना चाहिये।
और भी आगे पर्युषणा विचारके चौथे पृष्ठकी १५ वीं पंक्तिसे २१वीं पंक्ति तक लिखा है कि-( दूसरी बात यह है किसी समय सोलह (१६) दिनका पक्ष होता है और कभी चौदह दिनका पक्ष होता है उस समय 'एक पख्खाणं पन्नरसरहं दिवसाणं' इस पाठको छोड़कर क्या दूसरी पाठकी कल्पना करते हो यदि नही करते तो एक दिनका प्रायश्चित्त बाकी रह जायगा जैसे तुम्हारे मतमें 'चउरह मासाणं' इत्यादि पाट कहनेसे अधिकमासका प्रायश्चित्त रह जाता है )___ अपरके लेखकी समीक्षा करके पाठकवर्गको दिखाता हूं कि हे सज्जन पुरुषों सातवें महाशयजीके ऊपरका लेखको देखकर मेरेकों बड़ाही विचार उत्पन्न होता है कि-सातवें
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