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[ ३६९ ) और आगे फिर भी सातवे महाशयजीने पर्युषणा विचारके तीसरे पृष्ठकी २०वीं पंक्तिसें चौथे पृष्ठकी दूसरी पंक्ति तक लिखा है कि ( दूसरा दोष-भाद्रसुदीमें पर्युषणा पर्व कहा हुवा है तत्सम्बन्धी पाठ आगे कहेंगे अधिकमास मानने वाले प्रावण सुदीमें पर्युषणा करते हैं शाखानु कूल न होनेसें आनाभन दोष है ) इस लेखकी समीक्षा करके पाठकवर्गको दिखाता हूं कि हे सज्जनपुरुषों मास पद्धिके अभावसें चन्द्रसंवत्सरमें भाद्रपद में पर्युषणा होनेका दोनुं चूर्णिकार महाराजोंने कहा है तथापि सातवें महाशयजीने वर्तमानकालमें मासवृद्धि दो श्रावण होते भी भाद्रपदमें पर्युषणा स्थापन करनेके लिये आगे पीछेके सम्बन्ध वाले पाठोंको छोड़ करके दोनुं चूर्णिकार महाराजोंके विरुद्ध थोडासा अधूरा पाठ मायावृत्तिसे आगे लिखा जिसकी समीक्षा मैंसी आगेही कगा । परन्तु इस जगह तो दो श्रावण होनेसे दूसरे श्रावणमें पर्युषणा करने वालों को सातवें महाशयजीने शास्त्र विरुद्ध ठहरा करके आशा भङ्गका दूसरा दूषण उगाया है सो शास्त्रोंके प्रमाणपूर्वक वर्तने वालोंको झूठे ठहरा करके मिथ्यादूषण लगाया है तथा उत्सूत्र भाषणसे सत्य बातका निषेध करके मिथ्यात्व बढ़ाया है और अपने विद्वत्ताकी हासी भी कराई है क्योंकि अधिकमासको गिनतीमें लेनेका श्रीजैनशास्त्रानुसार तथा कालानुसार लौकिक पञ्चाङ्ग मुजब और युक्तिपूर्वक निश्चय करके स्वयं सिद्ध है इसलिये अधिक मासकी गिनती निषेध नही हो सकती है इसका विशेष विस्तार छहों महाशयोंके लेखोंकी समीक्षामें अच्छी तरहसें छप गया है
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