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भीगन्धाचारपयन्नाकी वृत्तिमें १६ इत्यादि शास्त्रों में नासवृद्धिके अभावसे चन्द्रसम्वत्सरमें चारमासके १२० दिन का वर्षाकालमें ५० दिने पर्युषणा करनेसें पर्युषणाके पिछाड़ी कार्तिक तक 90 दिन रहते है जिसके सम्बन्धमें एसीही ग्रन्यके पृष्ठ ९४ तथा और १२० । १२९ वगैरहमें कितनीही जगह पाठ भी छप गये हैं और मासवृद्धि होनेसें अभिवर्द्धित संवत्सरमें जैनपञ्चाङ्गानुसार आषाढ़ चौमासीसे वीश दिने पर्युषणा करनेमें आती थी तब भी पर्युषखा के पिछाड़ी कार्तिक तक १०० दिन रहते थे इसका भी विशेष खुलासा इसीही ग्रन्यके पृष्ठ १०७ से १२३ तक छप गया है और वर्तमान कालमें जैनपञ्चाङ्गके अभावसे लौकिक पञ्चाङ्गमें हरेक मासांकी रद्धि हो तो भी ५० दिनेही पर्यु: षणा करनेकी मर्यादा है सो भी इसीही ग्रन्थकी आदिसे पष्ठ २७ तक और छठे महाशयजी श्रीवल्लभाविजयजीके लेस की समीक्षामें पृष्ठ २८६ से २९ तक बप गया है इसलिये वर्तमानकालमें दो श्रावणादि होनेसें पाँच मासके १५० दिनका वर्षाकालमें ५० दिने पर्युषणा करनेसें पर्युषणाके पिछाड़ी कार्तिक तक १०० दिन रहते हैं सो भी शास्त्रानुसार और युक्तिपूर्वक होनेसे कोई भी दूषण नही है इसका भी विशेष निर्णय इसीही ग्रन्यके पृष्ठ १२० सें १२९ तक और पष्ठ १७७ के अन्तसै १८५ तक छप गया है इसलिये दो श्रावण होनेसे दूसरे श्रावणमें पर्युषणा करने वालों को पर्युषणा पिछाड़ी ७० दिन रखने सम्बन्धी और १०० दिन होनेसें दूषण लगाने गम्बन्धी सातवें महाशयजी लिखना अज्ञात सूचक और उत्सूत्र भाषण है। सो पाठकवर्ग विचारलेवेंगे,
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