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[ ३३३ ] इत्यादि इसी तरहसे अनेक बातों बहुत उत्सूत्रोंसे वहा अनर्थ किया है उसके सबका निर्णयतो "आत्मभ्रमोच्छेदन भानुः" के अवलोकनसे अच्छी तरहसे हो जावेगा।
और न्यायाम्भोनिधिजीने 'जैनसिद्धान्त समाचारी' पुस्तकका नाम रक्खा परन्तु वास्तवमें उत्सूत्र भाषणोंके और कुयुक्तियों संग्रहको पुस्तक होनेसे आत्मार्थी भव्यजीवोंके मोक्षसाधन में विघ्नकारक और भोजिनालासे बालजीवोंकी भद्धाबाट करनेवाली मिथ्यात्वके पाखन्डको भ्रमजालरूप हैं सो इसके बनानेवालोंको, तथा ऐसी जाल बनाने में संसारइद्धिकी भूत खूबही दलाली कोशिस करनेवालोंकों, और मिथ्यात्वको बढ़ा करके संसारने भ्रमानेवाली ऐसीजाल प्रगट करने मीभावनगरकी मीजैनधर्मप्रसारकसमाके मेम्बरलोग उस समय आगेवान् हुए जिन्होंको, और इसके बनानेको खुसीमानकर अनुमोदना करनेवालोंको और इसी मुजब अन्धपरंपरा गड्डरीह प्रवाहकी तरह चलकर श्रीजिनाजानुसार सत्यबातों की निन्दा करनेवालोंको, भोजिनेश्वर भगवान्की आनाके भाराधक सम्यक्त्वी आत्मार्थी जैनी कैसे कहे जावे इस बातको तत्त्वग्राही मध्यस्थ सज्जनस्वयं विचारलेवेंगे
और शास्त्रोंकेविरुद्ध तत्सूत्रप्ररूपणा करनेवालेको मिथ्यात्वी अनन्त संसारी अनेकशास्त्रों में कहा और न्यायाम्भोनिधिजी नाम धारक श्रीआत्मारामजीने तो एक 'जैन सिद्धान्त समाचारों नामक पुस्तकमें इतने शास्त्रोंके विरुद्ध लिखके इतने उत्सूत्र भाषण किये हैं तो फिर पहिले टूटकमतकी दीक्षाने और अन्यकार्यो में कितने उत्सूत्रभाषण करकेकितने शास्त्रोंकेविरुद्ध प्ररूपणाकरी होगी जिसके फल विपाकका कितना अनन्त संसार कढ़ाया होगा सो तो श्रीजानीजी महाराज जाने।
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