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भाषण भी लिखे हैं जिसके नमूनारूप एक सामायिक विषय सम्बन्धी संक्षिप्तसे ऊपर मेंही लिखने में आया है, और पर्युषणाके विषयमें भी अनेक जगह उत्सूत्र भाषण किये है उसकी भी समीक्षा इसही ग्रन्थके पृष्ट १५१ से २९६ तक छप गई है सो पढ़ने से निष्पक्षपाती सत्यग्राही सज्जन स्वयं विचार लेवेंगे ।
और 'शुद्धसमाचारी' की पुस्तक में पौषधाधिकारे विधिमार्ग उत्सर्गसे- अष्टमी, चतुदर्शी, पूर्णिमा और अमावस्या इनच्यारों पर्वतिथियों में पौषध करने सम्बन्धी श्रीसूयगडांगजी, उत्तराध्ययन जी, उववाईजी, धर्मरत्नप्रकरण वृत्ति, योगशास्त्र वृत्ति, धर्म बिन्दु वृत्ति, नवपद प्रकरण वृत्ति, समवायांग वृत्ति, पंचाशक वृत्ति, आवश्यक चूर्णि, तथा बृहद् वृत्ति, और श्रीभगवतीजीसूत्र वृत्ति, वगेरह शास्त्रोंके पाठ दिखाये थे जिसका तात्पर्यार्थको समझे बिना शास्त्रोंके विरुद्ध होकर हमेशां पौषधकरनेका ठहरानेके लिये श्री आवश्यक सूत्रको चूर्णिमें तथा बृहद्वृत्तिमें और लघुवृत्ति और श्रीप्रवचनसारोद्धार वृत्तिमें, श्रीसमवायांगजी सूत्रकी वृत्ति श्रीपंचाशकजीकी चूर्णिमें तथा वृत्तिमें और श्रीतपाशकदशांग वृत्ति वगैरह अनेक शास्त्रोंमें श्रावकको ११ पडिमाके अधिकारने पांचवी डिमाको विधिमें "श्रावक दोनमें ब्रह्मचर्य व्रत पाले और रात्रिको नियम करें" ऐसे खुलासे पाठ हैं तिसपरभी न्यायभोनिधिजीने अन्धपरंपरासे विवेक शून्य होकर शास्त्रकार महाराजोंकेविरुद्धार्थमें अपनीमतिकल्पना से श्री आवश्यकवृत्ति वगैरहके पाठका" दिवसका ब्रह्मचर्यपाले रात्रिको कुशीलसेवे” ऐसा वीपरीत अर्थ करके मैथुन सेवनकी हिंसाका उपदेश करनेका शास्त्रकारोंको झूठा दूषण लगाके वडाभारी अनर्थ करके जैनसिद्धांत समाचारी नामक पुस्तकमें दुर्लभबोधिका कारण किया है
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