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[ ३३४ ] और न्यायाम्भोनिधिजीने श्रीजैनतत्वादर्शमें, अचान तिमिर मास्करमें, और श्रीजैनधर्मविषयिक प्रश्नोत्तर नामा पुस्तकमेंजो सन्दूत्रभाषणरूपलिखा है जिसकेसम्बन्धमें आगे लिखनेमें आवेगा
और इस तरहसे अनेक शास्त्रोंकेपाठोंकी श्रद्धारहित तथा शास्त्रोंके भागेपीछेके सम्मन्धवालेपाठोंको छोड़करके शास्त्रकार महाराजोंके विरुद्धार्थमें अधूरे अधूरे पाठलिखके उलटे वीपरीत पर्य करनेवाले और शास्त्रकारमहाराजोंको विसंवादीकानिच्या दूषण लगानेवाले और श्रीअनन्त तीर्थङ्कर गणधरादि महाराणोंकी आज्ञानुसार सत्यबातोंका उत्थापन करके अपनी मतिकल्पनासे अन्धपरम्पराकी मिथ्या बातोंको स्थापन करते दुवे। अविधिरूप उन्मार्गके पाखण्डको फैलाने में सार्थवाहको बरह आगेवान बननेवाले और अपनेही गच्छके प्रभावक पुरुषों
दूषित ठहरानेवाले और बाल जीवोंको सत्य बातोंके निन्दक बना करके दुर्लभबोधिके कारणसे संसारकीखाड़मे गेरनेवाले ऐसे ऐसे महान् अनर्थ करनेवालेको गच्छपक्षकादृष्टिरागसे-गीतार्थ, पायाम्मोनिधिजी (न्यायके समुद्र ) और युगप्रधान, कलिकाल सर्व समान जैनाचार्य वगैरहकी लम्बी लम्बी ओपमालगाके ऐसे उत्सूत्री गाढ़कदाग्रहियोंकी महिमा बढ़ा करके आडंबरसे मोले जीवोंको मिथ्यात्वके भ्रममें फंसानेके लिये उत्सूत्रभाषणोंके महान् अनर्थका विचार न करके उपरोक्त मिथ्या गुण लिखनेबालोंकी पागतिहोगी तथा कितनासंसारबढ़ावेंगे औरसम्यक्त्व रल कैसे प्राप्तकर सकेंगे सो तो श्रीज्ञानीजीमहाराज जाने।
अब प्रीजिनेश्वर भगवान्को माजाके आराधक सज्जन : पुरुषोंको मेरा इतमाही कहना है कि अपरके लेखको पड़के दृष्टिरागके पक्षपातको न रखते हुये संसार सृद्धिको
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