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[ ३४९ ] हुवे श्रीजिनाजा विरुद्ध पञ्चाङ्गीके प्रमाण रहित कल्पित बातोंको छोड़ करके श्रीजिनाना मुजब पञ्चाङ्गीके प्रत्यक्ष प्रमाण पूर्वक सत्यबातोंको ग्रहण करके अपनी आत्माका कल्याण करनेके कार्यों में उद्यम करना चाहिये जिससे आत्मकल्याण होगा नतु तत्वातत्वका विचारशून्य अन्धपरम्परामें-जैसे कि, ८० दिने पर्युषणा करना १, फिर मायात्तिसे अधिक मासका निषेध भी करना २, तथा श्री वीरप्रभुके छ कल्याणकोंका निषेध करना ३, और सामायिक करते पहिलेही हरियावही करना ४, और आंबीलमें अनेक द्रव्य भक्षण करने कराने ५, इत्यादि अनेक बातें शास्त्रों के प्रमाण बिना गहरीह प्रवाहकी तरह मात्माधियोंको त्यागने योग्य गम कदाग्रहकी द्रव्य परम्परा प्रचलित है नतु शास्त्रों प्रमाणानुसार भावपरम्परा पयोंकि भीतीर्थकर गणपरादि महाराजोंकी मानानुसार पञ्चाङ्गीके अनेक शाखोंमें दिनोंकी गिनतीसें ५० दिने पर्युषणा कही है , और अधिकमासको भी खुलासा पूर्वक गिनतीमें लिया है २, तथा श्रीवीरप्रभुके छ कल्याणकोंको भी अच्छी तरहसे खुलासा पूर्वक कहे हैं ,और सामायिकाधिकारे प्रथम करेमिभंतेका उच्चारण करना कहा है, और आंबीलमें भी दो द्रव्योंका भक्षण करना कहा है , सोही अपरोक्त बातें शास्त्रानुसार भावपरम्परा में होनेसे भात्मा. र्थियोंको ग्रहण करने योग्य है इन अपरकी बातोंका निर्णय भाठोंही महाशयोंके उत्सूत्र भावणके लेखोंकी समीक्षा सहित इस प्रन्यको संपूर्ण पढ़नेवाले निष्पक्षपाती तत्व. पाही सन पुरुषोंकोस नाइनोजावेगा।
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