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और द्रव्य भाव परम्पराका विशेष विस्तार देखनेकी इच्छा होवे तो श्रीखरतरगच्छनायक सुप्रसिद्ध श्रीमवाकी वृत्तिकार श्री अभयदेवसूरिजीकृत श्रीआगम-अष्टोत्तरी नामा ग्रन्थ 'आत्म- हितोपदेश -नामा पुस्तकमें' गुजराती भाषा सहित श्रीअहमदाबादसे उपके प्रसिद्ध होगया है सो पढ़नेसें अच्छी तरहसें मालूम हो जायेंगा ।
और श्री सर्वच कथित श्रीजैनशासन अविसंवादी होने से श्रीतीर्थङ्कर भगवानोंके जितने गणधर महाराज होते हैं उतनेही गच्छ कहे जाते हैं उन्ह सबीही गच्छवाले महानुभावोंकी ऐकही परूपना तथा एकही वर्ताव होता है और इस वर्त्तमान कालमें तो बहुतही गच्छवालोंके आपस में अनेक तरहके विसंवाद होनेसे जुदी जुदी परूपमा तथा जुदा जुदा वर्ताव है और बहुतही गच्छ वाले अपने अपने गच्छकी परम्परा सुजब धर्मकृत्य करते हुवे आप श्रीजिनाज्ञाके आराधक बनते हैं और दूसरे गच्छवालों को झूठे ठहरा करके निषेध करनेके लिये - राग, द्वेष, निन्दा, ईर्षा खण्डन मण्डन करके, आपसमें बड़ाही भारी विसंवादसे मिथ्यात्वको बढ़ानेवाला झगड़ा करते हैं इसलिये वर्तमान कालमें अपनी अपनी परम्परापर दृढ़ रहने सम्बन्धी सातवें महाशयजीका लिखना मिथ्यात्वका कारणरूप उत्सूत्र भाषण है क्योंकि अपनी अपनी परम्परा पर आरूढ़ होकर धर्मकृत्य करने वाले सबी गच्छवाले श्री जिनाज्ञाके आराधक हो जायेंगे तो फिर अविसंवादी श्री जैनशासनकी मर्यादा कैसे रहेगा इसलिये वर्तमान कालमें अपने अपने गच्छपरम्पराकी बातोंका पक्षपात न रखते
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