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[ २ ] मियम नही रहता है याने हर अधिक मासके हिसाबसें पश्चादानुपूर्वी अर्थात् आषाढ़, ज्येष्ठ, वैशाख,चैत्र, फाल्गुन, माघ, पौषादि हरेक मासोंमें होते है इसलिये मुसल्मानोंके ताजिये फिरनेका दृष्टान्त लिखके श्रीपर्युषणापर्व फिरनेका दिखाना सो पूरी अन्तताका कारण है इसलिये श्रीसर्वज्ञ कथित श्रीपर्युषणापर्व फिरनेका और अधिक मासको गिनती में निषेध करने के संबन्धी मुसल्मानोंके ताजियांका दृष्टान्त उत्सत्र भाषणरूप होनेसें न्यायरत्नजीको लिखना उचित नही है इस बातको सज्जन पुरुष उपरके लेखसें स्वयं विचार सकते है;___और आगे फिर भी न्यायरत्नजीने अपनी कल्पनासे लिखा है कि (दूसरा यह भी दूषण अयगा कि वर्षभरमैं जो तीन चातुर्मासिक प्रतिक्रमण किये जाते है उसमें पचमासिक प्रतिक्रमणका पाठ बोलना पड़ेमा शीतकालमें और उष्णकालमें तो अधिक महिना गिनतीमें नहीं लाना और चौमासेमें गिनती में लाकर प्रावणमें पर्युषणा करना किस न्याय की बात हुई ) इस लेखसे न्यायरत्नजीने जैनशास्तों का तथा अधिक मासको गिनती में प्रमाण करने वालोंका तात्पर्य्यको समझे बिना दूसरा दूषण लगाया सो मिथ्याभाषण करके वड़ी भूल करी है क्योंकि जिस चौमासेमें अधिक मास होता है उसीको अभिवर्द्धित चौमासा कहा जाता है संवत्सरवत् अर्थात् जिस संवत्सरमें अधिक मास होता है उसीको अभिवर्द्धित संवत्सर कहते है इसी ही न्यायानुसार अधिक मास होथे तब उस चौमासेमें पञ्चमास तथा संवत्सरमें तेरह मासका पाठ सर्वत्र प्रतिक्रमणमें अवश्य
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