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गिनती में लेनेवालोंको दूषण लगाना यह तो न्यायरत्नजीका हठवाद प्रत्यक्ष अन्यायकारक है सो पाठकवर्ग भी विचार सकते है ।
और भी दूसरा सुनो-खास न्यायरत्नजीनें संवत् १९६६ की सालका बयान याने शुभाशुभका फल संक्षिप्त जैनपत्र के साथ में जूड़ा हेण्डबिल में प्रसिद्ध किया है उसीमें [ इस वर्ष में श्रावण महिना दो है ऐसा लिखा है तथा अधिक मास के कारण दोनु ही श्रावणकी गिनती सहित तेरह मासों के प्रमाणसे तेरह अमावस्या और तेरह पूर्णिमाकी सब घड़ियोंकी गिनती दिखाई है और प्रथम श्रावण वदी १९ तथा १२ के दिन और दूसरे श्रावण वदी १० के दिन अच्छा योग्य बताया है और प्रथम श्रावण शुद्धी में सप्त नाड़ीचक्र में सूर्य्य और गुरु जलनाड़ी पर आनेका लिखा है और प्रथम श्रावण शुदी पञ्चमीके दिन सिंह राशि पर शुक्र आनेका लिखा है फिर दूसरे श्रावण शुक्लपक्षमें बुधका उदय होगा वहां दुनियाके लोग सुखी रहनेका लिखा है फिर प्रथम श्रावण वदी ४ बुधवार तक दुर्मति नामा संवत्सर रहनेका लिखा है बाद याने प्रथम श्रावण वदी पञ्चमी गुरुवारका दुन्दुभि नामका संवत्सर लगनेका लिखा है फिर दूसरे श्रावणमें मीन राशि पर शनि और मङ्गल वक्र होनेका लिखा है ] इस तरह से खुलासाके साथ न्यायरत्नजी अपने स्वहस्ते दोनु श्रावण महिनोंको बरोबर लिखते है गिनती में लेते है छपाके प्रसिद्ध करते है ( और दोनु श्रावणके कारण से तेरह मासेांके ३८३ दिनका वर्ष दुनिया में प्रसिद्ध है) इस पर निष्पक्षपाती आत्मार्थी सज्जन पुरुषोंको न्याय दृष्टिसें
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