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[ २२० । तो फिर उसी बातको याने पर्युषणा विचारको देख लेमेका लिख करके उसीको छापामें पुष्ट किया, यह तो प्रत्यक्ष मायावृत्तिका कारण है इसलिये जो सीपाणीजीके पत्रका वाक्य छठे महाशयजी सत्य मानेंगे तो छापेमें पर्युषणा विचारको पुष्ट करनेका जो वाक्य लिखा है सो वथा हो जावेंगा और छापेका वाक्य सत्य मानेंगे तो सीपाणीजीके पत्रका वाय मिथ्या हो जावेगा और पूर्वा. पर विरोधी विसंवादी दोन तरह के वाक्य कदापि सत्य नही हो सकते हैं इसलिये दोनुमेंसें एक सत्य और दूसरा मिथ्या माननाही प्रसिद्ध न्यायकी बात है, जिससें सीपाणी जीके पत्रका वाक्यको सत्य मानोंगे तो छापेका लेख विसंवादीरूप मिथ्या होनेकी आलोचना छठे महाशयजी आप को लेनी पड़ेगी और छापेका वाक्यको सत्य मानोंगे तो. सीपाणीजीके पत्रका वाक्य विसंकादीरूप मिथ्या होनेकी आलोचना लेनी पड़ेगी और पर्युषणा विधारमें उत्सूत्र वाक्य लिखे हैं उसीके अनुमोदनके फलाधिकारी होना पड़ेगा सो विवेक बुद्धि हो तो अच्छी तरह विचार लेना ;___ और छठे महाशयजी श्रीवल्लभविजयजीके खबरदारका इस लेखमें तथा सावधान सावधानका दूसरा गुजराती भाषाका लेखमें और सीपाणिजोके पत्रका लेखमें इन तीनों लेखोंका वाक्यमें कितनीही जगह मायावत्ति ( कपट ) का संग्रह है इससे श्रीवल्लभविजयजीको कपट विशेष प्रिय मालूम होता है और पाचन्द्रोदय की पुस्तकमें भी श्रीवल्लभाविजयजीको 'दम्भप्रिय' लिखा है सोही नाम उपरके कृत्योंसे सत्य कर दिखाया है,
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