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[ ३०९ ] बुद्धि कैसी शून्य होगई है सो अपनी हासी करानेवाले बिना विचारे शब्द लिखते कुछ भी लज्जा नही आई क्योंकि श्रीवल्लभाविजयजी आत्मार्थी महाब्रतधारी साधु होते तो वकील, बेरिस्टर, और नाणा कोपली, वगैरहको सावधान ! सावधान !! पुकारके कोर्ट कचेरीमें झगड़ा बढ़ानेकी तैयारी कदापि नही करते तथापि करी इससे विवेकी सज्जन स्वयं विचार डेवेंगे कि-श्रीवल्लभविजयजीने भेष धारण करके साधु नाम धराया परन्तु अन्तरमें श्रद्वारहित होमेसे शास्त्रार्थ पूर्वक सत्य असत्यका निर्णय करना छोड़ करके श्रीखरतरगच्छके और श्रीतपगच्छके आपसमें कोर्ट कचेरीमें झगड़ेको बढ़ाने के लिये श्रीजैनशासनकी निन्दा करानेवाले तथा मिथ्यात्वको बढ़ानेवाले और अपने नामको लज्जनीय शब्द लिखते पूर्वापरका कुछ भी विचार न किया और शक्त दिवाने बड़ेही पागलकी तरह-नाणा कोथली (रूपैयोंकी घेली) तथा कागद कलम और खड़ीओ रुशनाई (द्वात पाही) अचेतन अजीव वस्तुयोंको सावधान ! सावधान !! पुकारा-वाह क्या विद्वत्ताकी चातुराईका नमूना वठे महाशयजीने प्रकाशित किया है सो पाठकवर्ग स्वयं विचार लेवेंगे,___ और दूसरा यह है कि खास छठे महाशयजीकी सम्मति पूर्वक पञ्जाब अमृतशहरसें, घासीराम और जुगलरामको गङ्गाजी भेजकर पवित्र करवाये जिसका कारण संक्षिप्तसे इसीही अन्यके पृष्ट १७५-१७६ में छपगया है और विशेष विस्तार पूर्वक पञ्जाब लाहोरसें जसवन्तराय जैनीकी मारफत श्रीआत्मानन्द जैन पत्रिका मासिक पत्र प्रसिद्ध
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