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भारी कhin बंध किये हैं और श्रीजैनशासनके निन्दकोंकों भी उसी रस्तो पहुंचानेके लिये नरकादि अधोगतिका सार्थवाह ( कुंदनमल ढूंढक ) बना है और पुस्तक प्रगट कराई हैं जिसमें छठे महाशयजीके गुरुजीकी तथा उन्हों के सम्प्रदाय वालोंकी भी निन्दा करी हैं तथा खास छठे महाशयजी वगैरहको भी अनेक शब्द लिखते तीनवार धीक्कार भी लिख दिया हैं और श्रीजैनशासनको मिन्दा करके मिथ्यात्व बढ़ानेका कारण किया - उसीको तो छठे महाशयजीमें कुछ जबाब भी न दिया और सर्व श्रीसङ्घको तथा वकील, बेरिस्टर वगैरहको सावधान करके कोर्ट कचेरी में श्रीजैनशासनके निन्दक कुंदनमल्लको शिक्षा दिलानेकी किञ्चिन्मात्र भी बहादुरी न दिखाई परन्तु श्री खरतरगच्छके और श्रीतपगच्छके आपसमें वृधाही कोर्ट कचेरीमें झगड़ा फैलाने के लिये और मिथ्यात्व बढ़ाने के लिये, वकील, बेरिस्टर, वगैरको सावधान करके बड़ीही बहादुरी दिखाई हैं सो बड़ीही आश्चर्य्यकी बात है कि श्रीजैनशासन के दुशमन निन्दकी से तो मुख छिपाते हैं और आपसमें झगड़ा करनेकी बहादुरी दिखाते कुछ लज्जा भी नही पाते है,
अब इठे महाशयजीको मेरा ( इस ग्रन्थकारका ) इतनाही कहना है कि आप सम्यक्त्वी और श्रीजैनशासन के प्रेमी होवो तो प्रथम श्रीखरतरगच्छके और श्रीतपगच्छके आपसमें न्यायानुसार शास्त्रार्थ पूर्वक अन्तरका पक्षपात छोड़कर सत्य असत्यका निर्णय करके असत्यको छोड़के सत्यको ग्रहण करो और श्रीजैनशासन के निन्दक कुंदनमलके
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