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[ ३०४ ] मिथ्यात्वका पाखण्डको च्छेदन करनेके लिये अपनी बहा दुरी प्रगट करो-जबतक कुंदनमलके मिथ्यात्व वढ़ानेवाले लेखका जबाब आप नही देवोगे तबतक आपकी विद्वत्ता वृथाही समझने में आवेगी और ढूंढकोके मुखपर शाही फिरानेके इरादेसे कार्य करनेकी अक्कल आपने दोडाई थी परन्तु पूर्वापरका विचार किये बिना कार्य कराया जिससे भापकही मुखपर शाही फिरने जैसा कारण बनगया और श्रीजैनतीयोंकी तथा अपने गुरुजी वगैरहको निन्दा कराने के निमित्त भूत दोषाधिकारी भी आपकोही बनमा पड़ा है
और अपने बड़ोको अपवित्र ठहरानेका कलङ्क भी लगवाया है इसलिये कंदनमल ढूंढकके निन्दारूपी मिथ्या गप्पोंका जबाब देना आपकोही उचित है. तथापि उन्हका जबाब देना आपको मुश्किल होवे तो आपके मण्डलीमें विद्वत्ता का अभिमान धारण करनेवाले बहुतसें साधुजी है उन्हके पास उसीका जबाब दिलाना चाहिये इतने पर भी आप की तथा आपके मण्डलीके साधुओंकी कुंदनमल्लके लेखका जबाब देनेकी बुद्धि नही होवे तो मेरी तरफसे इस ग्रन्थको संपूर्ण हुए बाद "कुंदनमलके मिथ्यात्वका पाखण्डच्छेदन कुठार" नामा अन्य आप लिखो तो बनाकर प्रगट करू जिसमें श्रीजैनतीों पर तथा श्रीजैनतीर्थों को माननेवालों पर और आपके गुरुजी वगैरह पर जो जो आक्षेप करके दूषण लगाया है जिसका न्यायानुसार युक्तिपूर्वक अच्छी तरहसे जबाब लिखके सबके आक्षेपको दूर करनेमें आवेगा
और कुंदनमलने अपने अन्तर गुण युक्त जो जो शब्द लिखे हैं उसीकाही न्याय युक्तिपूर्वक खास कुंदनमलकेही अपर घटानेमें आवेगा,
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