Book Title: Bruhat Paryushana Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Jain Sangh

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Page 417
________________ [ २ ] ... देखिये अपरके पाठमें पर्युषणाधिकारे चेव निश्चय करके अधिकमासको गिनतीमें कहा है और पूर्वधरादि उपबिहारी महानुभावोंके लिये निवासरूप पर्युषणा (योग्यक्षेत्र तथा उपयोगी वस्तुयोंका योग होनेसे) उत्सर्गसे आषाढ़पूर्णिमाकोही करनी कही परन्तु योग्यक्षेत्रादिके अभावसे अपवादसें पांच पांच दिनकी वृद्धि करते अभिवर्द्धित संवत्सरमें वीश दिन (श्रावण शुक्लपञ्चमी) तक तथा चन्द्रसंवत्सरमें पचास दिन ( भाद्रपदशुक्लपञ्चमी) तक पर्युषणा करनी कही-आषाढ़पूर्णिमाकी तथा पांच पांच दिन की वृद्धिको पर्युषणाको अधिकरणदोषोंकी उत्पत्ति न होने के कारण गृहस्थी लोगोंके न जानी हुई अज्ञात पर्युषणा कही है इसका विशेष खुलासा इन्ही ग्रन्थमें अनेक जगह छपगया है और वीशदिने तथा पचास दिने गृहस्थी लोगोंकी जानी हुई ज्ञातपर्युषणा कही उसीमें वार्षिक कृत्य वगैरह करने में आतेथे इसकाभी खुलासा इन्ही ग्रन्यमें अनेक जगह छप गया है जिसमें भी विशेष विस्तार पूर्वक पष्ठ ९०० से ११७ तक अच्छी तरहसे निर्णय करने में आया है। और मासवृद्धिके अभावसे पर्युषणाके पिछाड़ी कार्तिक तक ७० दिन रहते हैं तैसेहीमासद्धि होनेसें पर्यषणाके पिछाड़ी कार्तिक तक १०० दिन रहते हैं इसका भी विस्तार अनेक जगह पगया है जिसमें भी विशेष करके पृष्ठ १२० से १२९ तक और १७४ में १८३ तक अच्छी तरहसें निर्णयके साथ छपगया है और उत्कृष्टसें १८० दिन का कल्प कहा है ; और तीसरा श्रीजिनपतिसूरिजी कृत श्रीसमाचारी ग्रन्थकापाठलिखभेजाथा सोहीपाठ यहां दिखाताई यथा : Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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