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[ २५० ] यहरतिमें २० तथा प्रथम लघु वृत्तिमें २१ और दूसरी लघु वृत्तिमें २२ श्रीविशेषावश्यक २३ तथा तवृत्तिमें २४ श्रीसाधुप्रतिक्रमणसूत्रकी पत्तिमें २५ श्रीमूलशुद्धिप्रकरणमें २६ श्रीमहानिशीष सत्रमें २७ श्रीधर्मरत्नप्रकरणमें २८ तथा तद्वृत्ति २९ श्रीसङ्घपटक वहद्दत्तिमें ३० श्रीश्राद्धविधि वृत्तिमें ३१ श्रीआगम अष्टोत्तरीमें ३२ तथा तवृत्तिमें ३३ श्रीसन्देहदोलावलीवृत्तिमें ३४ श्रीसम्बोधसत्तरीमें ३५ तथा तवृत्तिमें ३६ श्रीवैराग्यकल्पलतामे ३७ श्रोत्रिषष्ठिशलाकापुरुष चरित्रमें ३६ और श्रीकल्पसूत्रकी सात व्याख्यायोंमें ४५ इत्यादि अनेक शास्त्रों में और भाषाके स्तवन, पद, ढाल वगैरहमें भी अनेक जगह लिखा है कि शास्त्र पाठ तथा एकाक्षरमात्री प्रमाण नही करनेवाला निनाव उत्सूत्र भाषककों श्रीतीर्थकर गवघर पूर्वधरादि पूर्वाचार्य परम गुरुजन महाराजोंकी आशातना करने वाला और उन्हीं महाराजोंके वापकों न मानता हुवा उत्थापन करने वाला बहुलकर्मी, माया सहित मिथ्या भाषण करने वाला, संयमसे भ्रष्ट, घोर नरक में गिरने वाला, चतुरगतिकप संसारमें कटुक विपाक दारुण (भयङ्कर ) फलको भोगने वाला, सम्यग्दर्शनसे भ्रष्ट, मिथ्यात्वी, दुर्लभबोधि, अनन्त संसारी, मोहन्यादि आठ कोंके चीकणे बन्धको बाँधने वाला, पापकारी इत्यादि अनेक विशेषण शाखोंमें कहे हैं जिसके सब पाठ इस जगह लिखनेसें बहुत विस्तार हो जावे तथापि भव्यजीवोंको निःसन्देह होनेके लिये घोड़ेसे पाठ भी लिख दिखाता हुँ; - श्रीलक्ष्मीवल्लभगणिजी कृत श्रीउत्तराध्ययनवृत्तौ अष्टादशाध्ययने-संमतराजर्षि क्षत्रियमुनिर्वदति हे महामुने
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