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मैं आत्मार्थी पुरुषोंकी) चली आती है उसी मुजब मोक्षात्रिलाबी सज्जन वर्त्तते हैं जिन्हों को छठे महाशयजीनें अपनी क्षुद्रबुद्धिकी तुच्छ विद्वत्ताके अभिमानसें उत्सूत्र भाषणका भयं न करते एकदम आज्ञा भङ्गका दूषण लगाके छापामें छपानेको आशा करी और शास्त्रानुसार चलने वालोंको मिथ्या दूषण लगानेके कारणसे झगड़ा फैलानेके कारण का जरा भी विचार नहीं किया और जब श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंने पचास दिने पर्युषणा करनेका कहा है उसीके अनुसार आत्मार्थी सज्जन पुरुष दूसरे श्रावणमें पचास दिने पर्युषणा करते है जिन्होंको छठे महाशयजी आज्ञाशङ्गका दूषण लगाते है जिससे श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंके वचनका अनादर होकर उन महाराजोंकी महान् आशातना होती है तथा अनेक सूत्र, पूर्णि, वृत्ति, प्रकरजादि शास्त्रोंके पाठोंके मुजब नहीं वर्त्तनेसे उत्थापन होता है और उन महाराजोंकी आशातना तथा अनेक शास्त्रों के पाठोंका सत्यापन और उन महाराजोंकी आज्ञानुसार अनेक शास्त्रोंके प्रमाणयुक्त वर्त्तने वालोंको स्वपक्षपातके पंडिताभिमानसें मिथ्या दूषण लगाना सो निःकेवल उत्सूत्रभाषणरूप है और उत्सू भाषण के लिये ;--
श्रीभगवतीजी सूत्रमें १ तथा तद्वृत्तिमें २ श्रीउत्तराध्ययनजी सूत्रमें ३ तथा तीनकी छ (६) व्याख्यायोंमें श्रीशवैकालिक सूत्रमें १० तथा तीनकी चार व्याख्यायेर्नि१४ श्रीपगाङ्गजी (सूत्रकृताङ्गणी) सूत्रकी नियु फिमें ९५ तथा तद्वृत्ति १६ मीसमवायाजी सूत्रमें ११ तथा तद्वृत्ति १८ श्री आवश्यकजी सूत्रकी पूर्णिमें १९ श्री आवश्यकजी मत्रकी
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