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[ २६० ] कोर्ट कचेरीमें बड़ेही भारी भगके कारण करनेका लेख लिखने में तथा प्रसिद्ध करानेमें तो छठे महाशयगी श्रीवल्लभ विजयजी आपको खूब लम्बा चौड़ा समय भी मिल गया, और परस्पर आपसमें ईर्षाकी वृद्धि होनेका किञ्चित् भी भय न लगा परन्तु श्रीबुद्धिसागरजीके पत्रका जबाब खानगीमें लिखनेसें बठे महाशयजीको वृथा समय खोनेका तथा परस्पर की वृद्धि करनेवाला काम करने का भय लगा, यह कैसी अलौकिक विद्वत्ताकी चातुराई ( सज्जन पुरुषोंको आश्चर्य उत्पनकारक ) छठे महाशयजी आपने गच्छ पनी दृष्टिरागी बालजीवोंको दिखाकर अपनी बातको जमाई सो आत्मार्थी विवेकी विद्वान् पुरुष स्वयं विचार लेवेंगे।
और आगे फिर भी छठे महाशयजीमें लिखा है कि ( कितनेही समयसें गच्छ सम्बन्धी टंटा प्राय दबा हुआ है तपगच्छ खरतरगच्छ दोनोंही पक्ष प्रायः परस्पर संपसे मिले जुलेसे मालूम होते हैं) इस लेख पर भी मेरेको यही कहना उचित है कि गच्छ सम्बन्धी टंटा दबाकरके शान्त करनेका और संपसे वर्तनेका श्रीखरतगचवालोंकी महान् सरलताका कारण है क्योंकि श्रीतपगच्छके तो भाप जैसे अनेक महाशय. संपके मूलमें अनी लगाके श्री खरतरगच्छवालोंकी सत्य बातका निषेध करनेके लिये सत्सूत्र भाषण करके अपनी मति कल्पनाकी मिथ्या बातका स्थापन करनेके लिये विशेष करके हर वर्षे गांम गांममें पर्युषणाके व्याख्यानाधिकारे प्रीजिनेश्वर भगवान्की आजानुसार अनेक शास्त्रों के महत् समाज मुजब अधिक मासकी
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