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[ २४ ] निकले होठे,-अर्थात् जिस आदनीके जैसी बात दिलमें होवे उस आदमीसें वैसेही अन्तरकी बातके सूचकरूप शब्द करके सहित भाषा निकलती है तैसे ही छठे महाशयजीने भी मानु अपनी आत्मामें रहनेवाले गुणोंके सूचक शब्द लिखके प्रसिद्ध किये है सो वह द्रव्य शब्दके भाव गुण छठे महाशयजी श्रीवविजयजीमें अवश्य ही दिखते हैं सोही पाठकवर्गको दिखाता हुं और साथ साथमें छठे महाशवजीकी अन्याय कारक अभ्याम्य बातोंकी समीक्षा भी करता हुं;.. छठे महाशयजीने ( गाम बसे वहाँ भङ्गी चमारादि अवश्य होते हैं ) यह अक्षर लिखे हैं इस पर मेरेको इतना ही कहना उचित है कि श्रीजिनेश्वर भगवान्की आज्ञाके माराधन करनेवाले जो सज्जन है सोही मानों गाम बसता है उसी गामरूपी मीजिनशासनमें उत्सत्र भाषक निन्दकादि भी चमारोंकी तरह उक महाशयजी आदि वसते है सो उस गामको निन्दारूप मलिनताकों उठाते हुए भी आप पवित्र बनना चाहते है सो कदापि नही बन सकते हैं और आगे फिर भी लिखा कि ( अच्ची अच्छी बातोंकी होशियारीके सापमें बुरी बुरी बातोंकी होशियारी भी आगे ही आगे बढ़ती हुई नजर आती हैं) ठे नहाशयजीके इन अक्षरों पर मेरेको यही कहना पड़ता है कि इस अंग्रेजी राज्यमें कलाकौशल्यता और न्यायशीलताके कारणसें श्रीनिमेश्वर भगवान्की आज्ञारूपी अच्छी अच्छी होशियारीकी वृद्धि के साथ सायमें बुरी बुरी होशियारीकी तरह प्रथम कदाग्रहके बीज लगानेवाले
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