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कारणसें उपरोक्त शास्त्रोंके प्रमाणानुसार पर सदमें तथा भवोभवमें कठे महाशयजीको पूरे पूरा पश्चाताप करना पड़ेगा इस लिये प्रथमही पूर्वापरका विचार किये बिना पश्चाताप करनेका कार्य्य करना छठे महाशयजी को योग्य नही था तथापि किया तो अब मेरेको धर्मबन्धु की प्रीति कठे महाशयजीको यही कहना उचित है कि आपको उपरोक्त कायोंसे संसार वृद्धिके कारण से यावत् भवोभवमें पश्चात्ताप करनेका भय लगता होवे तो नच्छका पक्षपात और पण्डिताभिमान को दूरकरके सरलतापूर्वक मन वचन कायासें श्रीचतुर्विध संघसमक्ष उपर कहे सो आपके कायोंका मिथ्या दुष्कृत देकर तथा आलोचना लेकर और अपनी भूल पीढी ही जैनपत्र द्वारा प्रगट करके उपरोक्त उत्सूत्र भाषणके फल विपाकोंसें अपनी आत्माको बचा लेना चाहिये नही तो बड़ी ही मुश्किली के साथ उपर कहे सो विपाकोंको भवान्तरमें भोक्ते हुए जरूर ही पश्चात्ताप करनाही पड़ेगा वहां किसीका भी पक्षपात नही है इस लिये आप विवेक बुद्धिवाले विद्वान् हो तो हृदयमें बिचार करके चेत जावो मैंने तो आपका हितके लिये इतना लिखा है सो मान्य करोगे तो बहुत ही अच्छी बात है आगे इच्छा आपकी ;--
और आगे फिर भी छठे महाशयजी -- अंग्रेज सरकार के कायदे कानून दिखाकर एक कहेगा दो सुनेगा ऐसा लिखते हैं इस पर मेरेको बड़ेही अफसोस के साथ लिखना पड़ता है कि इठे महाशयजी साधु हो करके भी इतना मिष्यत्वको वृथा क्यों फैलाते हैं क्योंकि सम्यक्त्वधारी
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