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शास्त्रों में भी पूर्णिमा अथवा अमावस्या के दिन ग्रहण होने का कहा है तथापि आप लोग सब दुनियाके तथा शास्त्रों के भी विरुद्ध होकर के प्रगट पने ग्रहवयुक्त पूर्णिमा अथवा अमावस्याको चतुर्दशी ठहराकर चतुर्दशीकाही ग्रहण मानते हो यह तो प्रत्यक्ष अन्याय कारक उत्सूत्र भाषण है।
२० वीशमा- चतुर्दशी का क्षय होनेसे पाक्षिककृत्य पूर्णिमा अथवा अमावस्याको करमेका जैनशास्त्रों में कहा है तथापि आप लोग नही करते हो और दूसरे करने वालोंको दूषण लगाके निषेध करते हो सो भी उत्सूत्र भाषण है ।
२१ एकवीशमा- आप लोग एकान्त आग्रहसे सूर्योदय के बिनाकी तिथिको पर्वतिथि में नही मानना, ऐसा कहते हो परन्तु जब चतुर्दशीका क्षय होता है तब सूर्योदयकी त्रयोदशीको चतुर्दशी कहते हो तो भी उत्सूत्र भाषण है ।
२२ बावीशमा-श्रीजेनज्योतिषकी गिनती मुजब, चन्द्र के गतिकी अपेक्षा श्रीचन्द्रप्रज्ञप्ति तथा श्रीसूर्य्यप्रज्ञप्ति वृत्ति वगैरह अनेक जैनशास्त्रोंमें पर्वकी तिथियांके क्षय होनेका लिखा है और लौकिक पञ्चाङ्गमें भी कालानुसार पर्वकी तिथियांका क्षय होता है और जैन पञ्चाङ्गके अभाव से लौकिक पञ्चाङ्ग मुजब वर्त्तनेकी पूर्वाचारयोंकी खास आज्ञा है, तैसेही आप लोग दीक्षा, प्रतिष्ठा वगैरह धर्म व्यवहार के कार्यो में घड़ी, पल, तिथि, वार, नक्षत्र, योग राशिचन्द्र, शुभाशुभ मुहूर्त, दिन, पक्ष, मास वगैरह सब व्aहार लौकिक पञ्चाङ्गानुसार करते हो तथापि आप लोग, लौकिक पञ्चाङ्गमें जो पर्व तिथियांका क्षय होता है उसीको नही मानते हो और माननेवालोंको दूषण लगाके निषेष करते हा सा भी उत्सूत्र भाषण है।
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