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तथा अन्यायमें चलनेवाले और दूसरोंको मिथ्या दूषण लगानेवाले उठे महाशयजी वगैरह अनेक पक्षपाती पुरुष बुरी बुरी होशियारीकी बातोंका सरणा लेते हैं सो बड़ी ही अफसोसकी बात हैं ;
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और आगे फिर भी छठे महाशयजीनें लिखा है कि ( खबरदार होकर होशियारीके साथ विचारकर सार निकालनेका ख्याल रखना योग्य हैं ताकि, पीछेसे पश्चात्ताप करने की जरूर न रहें ) इन अक्षरोंको लिखके छठे महाशयजी दूसरेकों होशियार होनेका बताते हैं परन्तु अपनी आत्माकी तरफ कुछ भी होशियारी न दिखाते हुए बिन विचारा काम करके इन भव तथा पर भव और भवो भवमें पश्चात्ताप करनेका कुछ भी भय नही रखते हैं क्योंकि श्रीतीर्थङ्कर गणधर पूर्वधरादि महान् उत्तम धुरन्धराचायोंने और खांस कठे महाशयजीके ही पूर्वज पूज्यपुरुषोंने अनेक सूत्र, वृत्ति, चूर्णि प्रकरणादि अनेक शास्त्रोंमें आषाढ़ चौमासीसे एक मास और वीश दिने याने पचास दिने श्रीपर्युषण पर्वका आराधन करना कहा है और इस वर्तमान कालमें लौकिक पञ्चाङ्ग में श्रावणादि मासोंकी वृद्धि होने के कारण आषाढ़ चौमासीसे पचास दिन दूसरे श्रावण में पूरे होते हैं तब शास्त्रानुसार पचास दिनकी गिनती से दूसरे श्रावणमें पर्युषणा करनेवाले श्रीजिवेश्वर भगवान्की आज्ञा के आराधक ठहरे और जैन शासनके प्रभावक तथा युगप्रधान और बुद्धिनिधान उत्तमाचाय्योंकी श्रीजिनाज्ञा मुजब दूसरे श्रावण में पर्युषणा करनेकी अनुक्रमें अखण्डित महत परम्परा (अनुमान १४०० वर्ष हुए जैन पञ्चाङ्गके अभाव
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