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नासके कारण श्रीज्ञानीजी महाराजके कहने सुजब कल्याणक आराधन करने में आते थे और अधिक मासको गिनती में भी करनेमें आता था इसलिये अधिक मासकी गिनती करनेसें श्रीतीर्थङ्कर महाराजोंके कल्याणक गिनती में नही बढ़ सकते है और इस पञ्चमें कालमें भरत क्षेत्र में श्रीज्ञानीजी महाराजका अभाव होनेसे और लौकिक पञ्चाङ्गमें हरेक मासोंकी वृद्धि होनेके कारणसें प्रथम मासका प्रथम कृष्णपक्ष और दूसरे मासका दूसरा शुक्लपक्ष में मास तिथि नियत कल्याणकादि धर्मकार्य्य तथा लौकिक और लोकोत्तर पर्व करनेमें आते है जिसका युक्तिपूर्वक दृष्टान्त सहित सातवें महाशय श्रीधर्मविजयजीके नामको समीक्षामें लिखने में आवेगा सो पढ़नेसें विशेष निर्णय हो जावेगा इस लिये न्यायरत्नजी कल्याणक बढ़ जाने के भयसें अधिक मासकी गिनती निषेध करते है सो जैन शास्त्रोंके विरुद्ध उत्सूत्रभाषण करते है सो उपरके लेखसें पाठकवर्ग भी विशेष विचार सकते है ।
और इसके अगाड़ी फिर भी न्यायरत्नजीनें लिखा है कि ( अधिक महिनोंके कारणसें कभी दो भादवे हो तो दूसरे भाद्रवेमें पर्युषणा करना चाहिये जैसे दो आषाढ महिने होते है तब भी दूसरे आषाढ़ में चातुर्मासिक कृत्य किये जाते है वैसे पर्युषणा भी दूसरे भाद्रवेमें करना न्याययुक्त है )
उपरके लेखकी समीक्षा करके पाठकवर्गको दिखाता हुं कि हे सज्जन पुरुषों उपरके लेखमें न्यायरत्नजीने मासवृद्धि के कारण दो आषाढ़ और दो भाद्रपद लिखे जिससे अधिकमास गिनती में सिद्ध होगया फिर अधिक मासको
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