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ही बोला जाता है इसका विशेष निर्णय सातमें महाशय श्रीधर्मविजयजीके नामकी समीक्षामें करने में आवेगा. ;--
और शीतकाल हो तथा उष्णकाल हो अथवा वर्षाकाल हो परन्तु लौकिक पञ्चाङ्गमें जो अधिकमास होगा ret कालमें अवश्य ही गिनती में करके प्रमाण करना यह तो स्वयं सिद्ध न्याययुक्ति की बात है जैसे वर्षाकाल में श्रावण भाद्रपदादि मास बढ़नेसें गिनती में लिये जाते है तैसे ही शीतकाल में तथा उष्णकालमें भी जो मास वढ़े सो ही गिनाजाता है इस लिये न्यायरत्नजीनें उपरका लेखमें शीतकालमें और उष्णकालमें अधिक मासको गिनती में नही लानेका लिखती वख़्त विवेक बुद्धिसे विचार किया होता तो मिथ्या भाषणका दूषण नही लगता सो पाठकवर्ग विचार लेना,
• और इसके अगाड़ी फिर भी न्यायरत्नजीनें अपनी विद्वत्ताकी चतुराई को प्रगट करनेके लिये लिखा है कि [ अगर कहा जाय कि पचाशदिनकी गिनती लिइजाती है तो पिछले 90 दिनकी जगह १०० दिन होजायेगे उधर दोष अध्यगा संवत्सरीके बाद 90 दिन शेष रखना यह बात समवायाङ्ग सूत्रमें लिखी हैं उसका पाठ - वासाणं सवीसइराइ मासे व कुन्ते सत्तरिराइदिएहिं सेसेहिं, इस लिये वही प्रमाणवाक्य रहेगा कि अधिक मास कालपुरुषकी चोटी होने से गिनती में नही लेना ] इस लेखपर मेरेको बड़े अफसोसके साथ लिखना पड़ता है कि न्यायरत्नजीकों विद्वत्ताकी चातुराई किस जगह में चली गई होगी सो अपने नामके विद्यासागरादि विशेषणेको अनुचितरूप कार्य्यकर के उपरके
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