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[ २०६ ] श्रावण मास हुवे है तब भी दोनु श्रावण मासमें वर्षा भी खूब ( गहरी ) हुई है तथा वनस्पति को भी नवीन पैदा होते वृद्धि होते और हानी होते पाठकवर्गने भी प्रत्यक्ष देखा है
और देश परदेशके सब वगीचोंमें भी दोन मासोंमें फलों करके तथा फूलों करके वृक्ष प्रफुल्लित पाठकवर्गके देखने में आये होंगें
और हरेक शहरों में वनमालि लोग अधिक मास, शाक, भाजी, फल, फूल, वेचते हुवे सब पाठकवर्गके देखने में आते हैं यह बात तो हरेक अधिक मासमें प्रत्यक्ष देखनेमें आती है. परन्तु कोई भी अधिक मासमें कोई भी देशमें कोई भी शहरमें शाक, भाजी, फल, फूलादि नवीन पैदा नहीं होते हैं तथा शहरमें भी वनमालि लोग वेचनेको नही आये हैं वैसा तो कोई भी पाठकवर्गके सुनने में भी कभी नही आया होगा। यह दुनिया परकी जगत् प्रसिद्ध बात है इस लिये अधिक मासको वनस्पति अवश्य ही अङ्गीकार करती है तथापि न्यायाम्भोनिधिजीने (अधिकमासको अचेतनरूप वनस्पति भी नही अङ्गीकार करती है) यह प्रत्यक्ष मिथ्या भोले जीवोंको अपना पक्षमें लानेके लिये लिख दिया-यह बड़ा ही अफसोस है। ....
और फिर भी न्यायाम्भोनिधिजी ( अधिक मासको अचेतनरूप वनस्पति भी मही अङ्गीकार करती है तो औरोको अङ्गीकार न करना इसमें तो क्याही कहना) इस लेखको लिखके मनुष्यादिकोंको अधिक मास अङ्गीकार मही करनेका ठहराते है इस पर तो मेरेको इतनाही कहना है कि न्यायाम्भोनिधिजीके कहनेसें तो सब दुनियाके सब लोगोंकों अधिक मासमें खाना, पीना, सोना, बैठना,
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