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[ ] और भी दूसरा सुनो अचेताकप, पारपतिको पा अ. बक मास उत्तम है किंवा तुच्छ है रीतिका कोई भी प्रकारका ज्ञान नही है इसलिये ( अच्छी नातिकी वनस्पति भी अधिक मासको तुच्छही जानके प्रपमित नही होती है ) यह अक्षर न्यायांसोनिधिजीके प्रत्यक्ष मिथ्या है। ___और भी मेरेकों बड़े ही अफसोसके साथ लिखना पड़ता है कि न्यायाम्भोनिधिजीने उपरमें वनस्पति सम्बन्धी उटपटाङ्ग लेख लिखते कुछ भी पूर्वापरका विचार विवेक बुद्धिसे नही किया मालुम होता है क्योंकि-प्रथम । ( अधिकमास को अचेतनरूप वनस्पति भी नहीं अङ्गीकार करती है) यह अक्षर लिखे फिर आगे श्रीआवश्यक नियुक्ति की गाथा ( शास्त्रकार महाराजके विरुद्धार्थ में ) लिखके भी भावार्थमें दूसरा। (हे अम्ब अधिक मासमें कणियरको प्रफुल्लित देखके तेरेको फुलना उचित नहीं है) यह लिख दिया है इससे सिद्ध हुवा कि अधिकमासको वनस्पति जो कणियरकी जाति उसीने अङ्गीकार किया और प्रफुल्लित हुई और वनस्पतिकी जाति अंबा भी अधिक मासको
अङ्गीकार करके प्रफुल्लित होताथा तब उसकों कहा कि - तेरेकों फलना उचित नही है। - अब पाठकवर्ग विवार करो कि प्रथर्मका ने अधिक मासको वनस्पति अङ्गीकार नहीं करने लिखा और दूसरे लेखमें अधिक मास, वनस्पतिको फूलना अङ्गीकार करनेका लिखदिया इसलिये जो न्यायाम्भोनिधिनी प्रपन का अपना लेस सत्य ठहराइँगे तो दूसरा लेख मिया हो जायेगा और दूसरा लेखको सत्य ठहराणे तो मतका.
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