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[ २२० ] पुरुषकी चूलिका यानी चोटी है जैसे किसी पुरुषका शरीर उचाईमें नापा जाय तो चोटीकी लंबाई नापी नही जाती है इसी तरह कालपुरुषकी चोटी जो अधिकमास कहा सो गिनती में नहीं लिया जाता कल्प पत्रकी टीकाका पाठकालचूलेत्यविवक्षणादिनानां पञ्चाशदेव ] ।
इस उपरके लेख में न्यायरत्नजीने अधिकमासको कालपुरुषकी चोटी लिखकर गिनतीमें नही लेनेका ठहराया है सो निःकेवल श्रीअनन्त तीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंके विरुद्वार्थमें उत्सूत्र भाषणरूप है क्योंकि श्रीअनन्त तीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंने अधिक मासको दिनों में पक्षोंमें मासोंमें वर्षों में अनादिकाल हुवा निश्चय करके गिनतीमें लिया है आगे लेवेंगे और वर्तमान काल में भी श्रीसीमंधर स्वामीजी आदि तीर्थङ्कर गणधरादि महाराज महाविदेह क्षेत्रमें अधिक मासको गिनतीमें लेते हैं तैसेही इस पञ्चमें कालमें भरत क्षेत्रमें भी अनेक आत्मार्थी पुरुष अनेक शास्त्रानुसार युक्ति पूर्वक देशकालानुसार अधिक मासको अवश्यही गिनतीमें लेते हैं इस बातका अनेक जगह उपरमें अधिकार छपगया है और आगे भी छपेगा इसलिये अधिकमासकों गिनती में नही लेनेका ठहराना न्यायरत्नजीका उत्सूत्र भाषणरूप होनेसे प्रमाणिक नही हो सकता है।
और न्यायरत्नजी अधिक मासको कालपुरुषको चलिका कहकर चोटी अर्थात् घासकी तरह केशांकी चोटीवत् लिखते हैं सो भी शास्त्रोंके विरुद्ध है क्योंकि श्रीअनन्त तीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंने चूलिका याने शिखरकी ओपमा गिनती करने योग्य दिवी है । जैसे। लक्ष योजनका सुमेरु
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